पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४३३

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. मैडेगास्कर-द्वीप के मूल निवासी / 429 है । जब ये आक्रमण, युद्ध, हर्ष-प्रकाशन आदि का आदेश अपने सहयोगियों या साथियों को देते हैं तब एक विचित्र रीति से अंग-मंचालन करते हैं; मुंह से कुछ नहीं कहने । इनकी बन्दूकें खूब लम्बी होती हैं । उनके ऊपरी भाग पर कांसे का एक कांटा लगा रहता है । वह शायद शिस्त लेने के लिए लगाया जाता है । नाच के समय ये लोग अपनी अपनी बन्दूक लिये रहते है। उन्हें ये एक हाथ से उछालते और दूसरे हाथ से रोकते है। उछालते समय जो हाथ खाली हो जाता है उससे ये अपने अपने रूमाल हिलाने लगते है। इस जाति के जो मूल निवासी समुद्र के पूर्वी तट की तरफ रहते है वे प्राय शान्त और नम्र स्वभाव के है । परन्तु उनके सिर के बाल देख कर डर लगता है । वे मुअर के बालो की तरह सीधे खड़े रहते है । वामस्थान के अनुसार इन लोगो के ममुदायों के नाम भिन्न भिन्न प्रकार के होते है । यथा--जंगलो में रहने वाले जंगली, मैदानों में रहने वाले मैदानी और झीलो के किनारे रहने वाले झील वाले कहाते है । मैडेगास्कर मे जो प्रान्त समुद्र-तट से दूर है वहाँ होवाम नाम की एक जाति रहती है। इस जाति के मनृप्य भी इस टापु के मूल निवासी है । यह गज-जाति है । यही जाति समस्त मूल निवासियो पर शासन करने का गर्व रखती है। वह कहती है, हम राजवशी है। अतएव शासन का अधिकार हमको छोड़कर और किसी को नही । परन्तु मकालवा लोग इनका शासन नही मानना नाहते । वे कहते है-हप चुना दीगरे नेम्त । होवाम होते कौन है ? उन्हे राजा बनाया किसने ? इस कारण इन दोनों जानियो में सदा झगड़े- बखेड़े हुआ करते है । नृवंश-विद्या के ज्ञाताओं का अनुमान है कि होवाम लोग मलयवंशी है। प्राचीन समय में कुछ जावा-निवासी मंडेगास्कर में जा बसे थे। ये लोग उन्ही की सन्तति है । इनका रंग गोरा, क़द नाटा और बदन मोटा होता है। बाल मुलायम और काले होते है । दाढ़ी छोटी और आंखे लाल-लाल होती है । अतएव रूप-रग और शरीर- संगठन में ये लोग सकालवा जाति के आदमियों से नही मिलते। फिर भला वे लोग इन गोगे का शासन क्यो स्वीकार करें? संमार में गोरों की धींगा-धीगी चलती जरूर है, पर मदा और मर्वत्र नहीं। सकालवा लोग कोई हाथ लम्बा और डेढ हाथ चौडा कपडा कमर में लपेटते हैं । स्त्रियाँ भी ऐसा ही करती है । स्त्री-पुरुष दोनो ही एक सा वस्त्र व्यवहार करते है। याद रहे, इन लोगों ने अपने गजे अलग बना रक्खे है । मलयवगी जाति के आदमियो के राजा वो ये अपना राजा नहीं मानते। इनके राजा लाल रंग के कपड़े पहनते है । रानियों भी इमी रंग के कपड़ो से अपने शरीर की सुन्दरता बढाती है । जब ये घूमने निकलती हैं तब इनके सिर पर लाल ही रंग का एक छत्र लगाया या मुकुट रक्खा जाता है । मार्ग में लोग झुक झुक उन्हें प्रणाम कर और आशीर्वाद देते है--"चिरंजीवी न्हें सदा गनी हमारी"। स्त्रियां अपने बाल बहुत कम बाँधती या गूंथती है । बात यह है कि यह काम बड़े परिश्रम और बड़े कष्ट का समझा जाता है । तीन, तीन चार चार घण्टे की लगातार मिहनत से कहीं एक स्त्री के बाल संवारे, गुंथे और बाँधे जा सकते है। इतना झंझट करे कोन ? वर्ष छ: महीने बाद हमारी होली दिवाली के त्योहार की तरह, इनके केश-प्रसाधन