पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४३४

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430/महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली का त्योहार भी मना लिया जता है। स्त्रियाँ, प्रसाधन के समय, अपने सिर के बालों को पहले 24 भागों में बाँटती हैं । फिर प्रत्येक भाग को अलग-अलग संवार कर उसका जूड़ा बनाती हैं। इसी तरह 24 जूड़ों का एक समूह बनाकर और उसे मजबूती से गूंथ कर लटका लेती हैं । कहीं कहीं जूड़ा न बनाने की भी चाल है । वहाँ समस्त केशपाश की 24 वेणियाँ बनाकर वही सिर के इधर-उधर लटका ली जाती हैं। सकालवा लोगो का प्रधान खाद्य तो चावल है; पर वे लोग मांसभोजी भी हैं। शाक-सब्जी और चावल के सिवा वे गाय, बैल, सुअर, बकरी आदि का मांस भी खाते हैं । वे दिन में दो दफ़े भोजन करते हैं-दोपहर को और फिर रात बीतने पर। इन लोगों का मेदा चावल अच्छी तरह नहीं हजम कर सकता । यदि किसी ने ज़रा भी अधिक खा लिया तो पेट चलने लगता है । भोजन करते समय पुत्र के सामने माँ बैठी ही नहीं रहती, वह उसके पेट पर ढीला करके फीते की तरह कपड़े की एक चिट बाँध देती है । खाते खाते बच्चे के पेट से ज्यों ही फीता लग जाता है त्यों ही माँ बच्चे के सामने से खाद्य पदार्थ खींच लेती है। मतलब यह कि बच्चा इतना न खा जाय कि हज़म न कर सके । सकालवा लोग नास के बड़े शौकीन हैं । वे दिन-रात नास सुंघा नहीं, किन्तु फांका करते हैं। सब जानते हैं कि हमारे देश में नास सूंघा जाता है। परन्तु सकालवा लोग उसे नाक से नहीं सूंघते । वे उसे मुंह में डालते और धीरे धीरे चूसा करते है । वे बाँस काटकर उसी की नासदानियाँ बनाते हैं । हम लोगों की तरह सकालवा भी अपने अपने घरो में छप्पर छाते हैं । उनके छप्पर घास के होते हैं । दीवारें लाल मिट्टी की होती हैं । घरों के दरवाजे छोटे होते हैं; सीधा खड़ा होकर आदमी घर के भीतर नहीं जा सकता । जब कोई सकालवा किसी और के घर जाता है तब एकदम घुसता नही चला जाता। वह दरवाजे पर रुक जाता है और खड़े खड़े आवाज देता है-"क्या मैं भीतर आ सकता हूँ?" यह सुनते ही गृहिणी उत्तर देती है-"शुभागमन । आइए।" यह कहती हुई वह बाहर निकल आती है और अभ्यागत को घर के भीतर ले जाती है। वहाँ वह उसे सादर बिठाती और आगमन का कारण इत्यादि पूछती है । ये लोग आतिथ्य करना खूब जानते हैं । अभ्यागतों का दिल कभी नहीं दुखाने । सकालवा लोग चटाइयाँ बनाने में बड़े पटु हैं । वे उसी पर बैठते और सोते हैं। उनके घर लम्बाई में पन्द्रह बीस गज से अधिक नहीं होते। वे बहुत गन्दे रहते हैं। कारण यह कि सोने, बैठने, भोजन बनाने, चीज़-वस्तु रखने और पशु बाँधने के लिए उनमें अलग अलग स्थान नहीं रहते। वहीं, उसी छोटे से घर में, सब काम होते हैं । जहाँ खाना बनाते हैं वहीं मो जाते हैं । जहाँ बैठते उठने हैं वहीं पशु बाँध देते है। ये लोग शुभाशुभ का बड़ा विचार करते हैं । इन्होंने कुछ दिन शुभ मान रक्खे हैं, कुछ अशुभ । इनका ख़याल है कि अशुभ दिन सन्तानोत्पत्ति होने से वह माता-पिता के लिए क्लेशदायक होती है। अतएव यदि किसी के घर बुरे दिन बच्चा पैदा होता है तो वह तत्काल ही पानी में डुबो कर मार डाला जाता है । पर कहीं कहीं इस रीति में कुछ अपवाद भी है। वहाँ अशुभ दिन में उत्पन्न हुमा बच्चा किसी गाय या बैल के आगे फेंक