मिशमी जाति 'स्टेटममन' नामक समाचार पत्र में मिशमी जाति के विषय में एक लेख, कुछ समय पूर्व, निकला था। उसमें मनोरंजन की विशेष सामग्री है । अतएव उसका आशय नीचे प्रकाशित किया जाता है- पाठक शायद कहेंगे कि यह मिशमी देश कहाँ से कूद पड़ा; इमका तो नाम तक हम लोगों ने नहीं सुना था। इसमें सन्देह नहीं कि हिन्दी भाषा-भाषियों में से बहुत कम लोगो ने इस देश या प्रान्त का नाम सुना होगा। अपने प्रान्त से यह है भी बहुत दूर । यह प्रान्त भारत के ठेठ उत्तर-पूर्वी कोने में चीन की सीमा से मिला हुआ है । इसके निवामी अर्द्ध-वन्य हैं और बड़े ही क्रूरकर्मा हैं । कई वर्ष हुए, इन बर्वर मिशमियों ने विलियममन और डाक्टर ग्रेगसन नाम के दो अँगरेज अफ़सरों को जान से मार डाला था। इन लोगों की निवामभूमि आमाम के सदिया प्रान्त के पास है । चीन की सीमा से मिला हुआ होने के कारण मिशमी प्रदेश पर चीन की सरकार की नजर पड़ने लगी। यह वात भारतीय गवर्नमेंट को पसन्द न आई । फल यह हुआ कि उसने अपने अफ़सर भेज कर मिशमियों पर अपना प्रभुत्व जमाना शुरू किया और अपने एक महकमे के द्वाग वहाँ की भूमि की नाप-जोख तक कग डाली। इमी नाप-जोख और देख-भाल के सम्बन्ध मे उसके दो अफ़मर भी मारे गये । पर भारतीय गवर्नमेंट ने मिशमियो को उनकी उद्दण्डता का फल चखा ही कर कल की। मिशमियों के देश का क्षेत्रफल कोई 3,500 वर्गमील है। भू-मापक विभाग (Survey Department) के कर्मचारियो ने वहाँ 15,500 फुट तक की ऊंचाई तक चढ़ कर काम किया है । बर्फ से ढके हुए पर्वतो पर हफ़्तों डेरे डालकर वहाँ उन्होंने जमीन की पैमायश की है और वहाँ की रत्ती रत्ती जमीन को छान डाला है । इस काम में, वर्षा और जाड़े की अधिकता के कारण, यद्यपि उन्हें बड़े घोर कष्ट सहने पड़े, तथापि उन्होने अंगीकृत काम को समाप्त करके ही पीछे पैर हटाया । यह देश अरण्यमय है । प्राय मर्वत्र ही यह घने जंगलों से आवृत है। सड़कें वहाँ बहुत ही कम है । जो हैं भी वे वहीं हैं जहाँ जंगल धना नहीं। मिशमियों के पास एक- मात्र हथियार है दाँव । उसे वे आवश्यक कामो ही के लिए व्यवहार में लाते हैं । वृक्षो को काट-छांट कर उन्हें कुण्ठित करना मिशमियो को पसन्द नहीं । अगम्य जगहों में जाने के लिए ये लोग रास्ता नहीं बनाते । इस विषय में ये बिलकुल ही उदासीन हैं। किसी तरह झाड़ियों और कँटीले पेड़ो के बीच से ये निकल जायेंगे । पर काट-छाँट न करेंगे । मगर ये पुल बनाना खूब जानते है । इस देश में एक ऐसा पुल है जो कोई सवा सौ गज लम्बा है। न उसमें कहीं कील-कांटा ही लगा है और न कहीं तार आदि ही है । सारा काम बेत और बाँस ही से लिया गया है । सभ्यता के सूचक कील-कांटों का यहां पता ही नहीं।
पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४३७
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