442 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली लोगों में जितने किस्से या कहानियां प्रचलित हैं वे सब बहुत पुरानी जान पड़ती हैं । उनसे सूचित होता है कि इनका देश किसी समय समुद्र-गर्भ में निमग्न था । सम्भव है, जैसा कि एक जगह ऊपर लिखा जा चुका है, किसी अज्ञात काल में इनका देश एशिया महाद्वीप से जुड़ा रहा हो और पीछे से समुद्र में डूब गया हो। इनकी कल्पना है कि आग पहले-पहल आकाश से प्राप्त हुई थी। कह नहीं सकते, पर शायद इनकी कहानियां किसी ज्वालामुखी पर्वत के स्फोट या बिजली गिरने से सम्बन्ध रखती हों। अन्दमनियों की जाति एक ऐसी जाति मालूम होती है जिसकी उत्पत्ति का पता न तो किसी इतिहास ही से मिलता है और न कथा-कहानियों ही से, अनुमान किया जा सकता है । इनकी प्राचीनता के मुकाबले में ईजिप्टवालों की प्राचीनता अभी कल की जान पड़ती है । अंगरेजी गवर्नमेंट इस जाति को जीवित रखने की बहुत चेष्टा कर रही है । पर उसके प्रयत्न सफल होते नहीं देख पड़ते। क्योकि इनकी संख्या दिन पर दिन घटती ही चली जा रही है। इस समय इस जाति के मनुष्यों की संख्या दो हजार से भी कम ही रह गई है। इन लोगों को बड़ी ही विचित्र बीमारियां हो जाती है। वे दवा-पानी से नही अच्छी होती । इनमें कुछ ऐसी विशेषता है कि इनके सन्तति कम होती है। विरले ही घरों में बाल-बच्चे दिखाई देते हैं। इनके ह्रास का सबसे बड़ा कारण यही है । डर है कि सौ दो सौ वर्ष में इस परम प्राचीन नेग्रिटो-जाति का कही अन्न ही न हो जाय । [दिसम्बर, 1926 की 'सरस्वती' में 'श्रीयुत सर्वसुख शर्मा' नाम से प्रकाशित । 'पुरातस्व-प्रसंग' में संकलित ।]
पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४४६
दिखावट