पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४५४

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450 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली ? समय से चले आ रहे थे। पहले पहल सब प्रकार के अधिकार और सब प्रकार की स्वाधीनता श्रेष्ठ जाति ही के लोगों को प्राप्त थी। कनिष्ठ जाति के लोगों को न तो किसी प्रकार की स्वाधीनता दी गई थी और न वे किसी अधिकार के योग्य ही समझे जाते थे। इन दोनों में विवाह आदि सम्बन्ध भी न होता था। इस कारण उनमें सदा फूट और कलह हुआ करता था। जब अड़ोस पडोस के कोई रजवाड़े रोमन लोगों पर हमला करते तब शत्रु के साथ युद्ध करने के लिए कनिष्ठ जाति के लोग श्रेष्ठ लोगों में कभी शामिल न होते थे। उनका कथन यह था कि जब श्रेष्ठ लोग हमको अपने समान हक़ और स्वतन्त्रता देंगे तभी हम उन्हीं लोगों में शामिल होगे । इस पर श्रेष्ठ आति के कुछ दूरदर्शी तथा विचारवान् लोगों ने अपने कनिष्ठ भाइयों का कहना मान लिया । स्वदेशहित की रक्षा के लिए उन लोगों ने अपनी जाति की श्रेष्ठता का वृथा अभिमान छोड़ दिया और कनिष्ठ जाति के लोगों को अपने समान हक़ दे दिये । ज्यों ही 'श्रेष्ठ' और 'कनिष्ठ' ये कृत्रिम भेद नष्ट हो गये त्यों ही रोम शहर के निवासी 'रोमन' नाम से पुकारे जाने लगे। उन लोगों की इस एकत्र शक्ति ने जादू का सा चमत्कार दिखाया । अल्प समय ही में रोम का साम्राज्य सारी दुनिया में फैल गया । इतिहासकारो ने उसको 'Mistress of the World' नाम की बहसमान-सूचक पदवी से विभूषित किया है। अच्छा, अब देखिए, हम लोगों में 'श्रेष्ठ' और 'कनिष्ठ' जाति-भेद हैं। क्या हम लोगों में इम जातिभेद के कारण फूट और कलह नहीं ? क्या यह हानिकारक जातिभेद हमारे देश की उन्नति में विघ्न नहीं उपस्थित कर रहा? यदि कर रहा है तो 'श्रेष्ठ' कहलाने वाली जाति के नेताओं को. गेमन श्रेष्ठ जाति के लोगो का अनुकरण करके और स्वदेशहित की ओर ध्यान देकर, 'कनिष्ठ' कहलाने वाली जाति के सब लोगो को उदार- भाव से अपने में में मिला लेने की श्रेष्ठता दिखानी चाहिए। जाति की श्रेष्ठता और कनिष्ठना के सूचक कृत्रिम तथा हानिकारक भेदों का नाश होने ही से हमाग कल्याण होगा। यह ऐसी बात है कि इस पर और अधिक लिखने की आवश्यकता नहीं। मरी बात-जब कभी गेमन प्रजासत्ताक गज्य पर कोई संकट आता था तब गेम के गजकर्ता तथा नीति-निपुण जन ऐमे मनुष्य को अपना नायक बनाते थे जो अपने गुणों के कारण और मव लोगों से अधिक श्रेष्ठ हो। वे लोग इस बात की परवा न करते थे कि वह मनुष्य किम जाति या दर्जे का है । किसी को मारे गज्य का नायक बनाने के लिए केवल स्वदेशहित ही की ओर ध्यान दिया जाता था। ज्यों ही ऐसे मनुष्य का चुनाव होता त्यों ही वह अपने घर का निजी काम छोड़ देता और अपनी मातृभूमि की मेवा करने को गेम शहर में जा पहुँचता । वहाँ प्रजा की ओर से जो अधिकार उमको दिया जाता उसका वह आनन्दपूर्वक स्वीकार करता और अपनी चतुरता तथा पगक्रम से देश पर आये हुए संकट का निवारण करता। ज्यों ही विजयी होकर अपना काम कर चुकता त्यो ही प्रजा-जनों पाये हुए अपने मब धिकार और पद का वह सन्तोषपूर्वक त्याग कर देता । इस प्रकार संकट के समय, आने देश की सेवा करके, बड़े बड़े गेमन सरदार अपने गांव को लौट जाते और फिर अपने घर के निजी कामों में खेती करने या हल चलाने में-निरभिमानता से निमग्न हो जाते । वे लोग स्वपराक्रम से सम्पादित