पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४७२

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468 / महावीरसाद द्विवेदी रचनावली कट्टर शत्र थे, जो यह चाहते थे कि सारी प्राचीन संस्थायें एकदम उखाड़ कर फेंक दी जायें और शीघ्र ही फ्रांस का काया-पलट हो जाय । इनके अतिरिक्त उस सभा में ऐसे भी लोग थे जो बलवाइयों के पक्षपाती थे और यह कहते थे कि यदि राज्यक्रान्ति का कार्य नियमित पद्धति के अनुसार न किया जा सकेगा तो हम यह काम बलवाइयों की सहायता से सिद्ध कर लेंगे। इन सब कठिनाइयों का सामना करते हुए राष्ट्रीय सभा ने फ्रांस के लिए नई राज्यपद्धति के नियम तैयार किये। प्राचीन हक़दार वर्गों के सारे हक छीन लिये गये; उनकी जायदाद जब्त कर ली गई। इसके बदले उन लोगों के लिए सरकार ने वेतन नियत कर दिया। गजा की सत्ता मर्यादित कर दी गई और यह नियम बना दिया गया कि राज्य का एक भी महत्त्व का कार्य राष्ट्रीय सभा की मम्मति के बिना न किया जाय। यह देख कर सन् 1791 के जून मे राजा ने राष्ट्रीय सभा की कैद से अपना छुटकारा करने का यत्न किया; पर वह सफल न हुआ। वह तुरन्त ही कैद कर लिया गया। अब लोगों को यह विश्वास हो गया कि 'गजा' भी प्रजा का विश्वासघात कर सकता है। इसके पहले राजा के विषय मे उन लोगो की श्रद्धा और भक्ति शुद्ध थी; परन्तु अब यह निश्चय किया गया कि यदि राजा प्रजा के हित का विरोध करेगा तो वह अपने पद से च्युत कर दिया जायगा और फ्रांस में प्रजा-मत्ताक राज्य स्थापित किया जायगा। अन्त में राजा ने हार मान कर राष्ट्रीय सभा के बनाये राज्य-प्रबन्ध-सम्बन्धी सब नियम, सन् 1791 ई० के सितम्बर महीने में. मंजूर कर लिये। राष्ट्रीय मभा के बनाये नियमो के अनुसार एक वर्ष तक गज्य का प्रवन्ध किया गया। परन्तु जब दूसरे वर्ष के आरम्भ में नये प्रतिनिधियो के चुनाव का समय आया तब मालूम हुआ कि गजनैतिक कामो में बहुतेरे लोग मन लगा कर काम नहीं करते। मध्यम वर्ग के लोग यह देख कर मन्तुष्ट हो रहे कि हकदार वर्गों के मब हक छीन लिये गये। अतएव अब हमको किमी प्रकार का कष्ट न भोगना पड़ेगा। इसलिए वे अपने देश की राजनैतिक दशा के विषय मे निश्चिन्त से हो गये । सर्वसाधारण लोग तो अपढ़, अजानी और दरिद्री थे। वे यही न जानते ये कि राजनीति किस चिड़िया का नाम है । उन्हे मिर्फ़ अपने पेट की चिन्ता थी। इमलिए वे भी राष्ट्रीय सभा के कार्यों में शामिल होने योग्य न थे। अव बचे बड़े लोग । यद्यपि इन लोगों के प्राचीन हक़ छीन लिये गये थे, तथापि वे अन्य वर्गों से अव भी अधिक सामर्थ्यवान् थे । यदि वे चाहते तो राष्ट्रीय सभा में शामिल होकर अपने देश की भलाई का बहुत कुछ काम कर सकते थे परन्तु उनमें से अधिकांश लोग स्वदेश त्याग करके. जर्मनी की भिन्न भिन्न रियासतों में जा बसे और वहाँ से, विदेशियो की महायता पाकर, राज्यक्रान्ति करने वालों के मार्ग में विघ्न उपस्थित करने लगे। ऐमी अवस्था में राष्ट्रीय सभा के सारे सूत्र पेरिस के उन लोगों के हाथ में चले गये केवल प्रजासत्ताक राज्य के पक्षपाती तथा गरम दल वाले थे। इम समय सभा के मामने चार कठिन विषय निर्णय के लिए उपस्थित थे- (1) जो धर्मोपदेशक सुधार के प्रतिकूल थे उनका क्या किया जाय? ये लोग अपने अपने गांव में अपने अपने अनुयायियों को नये सुधारों के विरुद्ध भड़काया करते थे।