पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/४९०

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आज जो स्थान हिन्दी को प्राप्त है उसको लाने में आचार्य द्विवेदी जी का अन्यों के साथ महान् स्थान है। अब वह ममय आ गया और हिन्दी अपने उस स्थान पर विराजमान है, जहां से उसे हटाने में भगीरथ प्रयत्न का भी सफल होना कठिन है। और इसका श्रेय वा कुछ आचार्य द्विवेदी जी आचार्य द्विवेदी जी युग प्रवर्तक थे, उन्होंने एक युग की समाप्नि देखी है और दूसरे युग के आरम्भ कराने में हाथ बंटाया है, किन स्वयं उनको इस असार संसार को उसी दीनावस्था में त्यागना पडा जैसा कि एसे पराधीन देश में विद्वानो और युग-प्रवर्तकों को करना पड़ता है। मझ इधर पचीस तीस वर्षों से आचार्य द्विवेदी जी से थोडा परिचय था एकाध बार उसकी चरण सेवा का मुद्दा भी अपर मिला था. म भली भानि इसका अनभव कर सकता के से या प्रवर्तक विद्रान सेवक का 1 . । । ३. मा खयाल नहीं किया व न उनके आ.. समय का सुखी बनाने में कोई हाथ ही बॅटाया । -शिवप्रसाद गुप्त गाथा .. आज (दैनिक) वामी किताबघर प्रकाशन