पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/६९

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योरप में कालिदास /65 बोलन (P. V. Bohlen) द्वारा, लिपजिक में, 1840 में, प्रकाशित हुआ। इनके सिवा भारतीय विद्वानों ने भी कालिदास के काव्यों के अनुवाद अंगरेजो में किये हैं। अरविन्द बाबू का किया हुआ 'विक्रमोर्वशी' का, अँगरेज़ी-पद्य में, अनुवाद अपूर्व है। इससे यह भली भांति स्पष्ट है कि संसार के श्रेष्ठ कवियों मे कालिदास का जो स्थान है उसके अनुकूल ही उनके काव्यो का प्रचार हो रहा है। मोनियर विलियम्स ने कहा है, "कालिदाम की कल्पना-शक्ति की प्रबलता, मानवीय अन्तःकरण का उत्कृष्ट ज्ञान, रचना-चातुर्य आदि ऐसे गुण हैं जिनसे हमें उन्हे भारतवर्ष का शेक्सपीयर कहना चाहिए।" फिर भी खेद की बात है कि जैसी आलोचना शेक्सपीयर के नाटकों की हो रही है वैसी आलोचना इस भारतवर्ष के शेक्सपीयर (कालिदास) की कृतियों की नहीं हो रही । [मई, 1920 को 'सरस्वती' में प्रकाशित । असंकलित ।]