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पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/७०

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योरप के कुछ संस्कृत विद्वान और उनकी साहित्य-सेवा आज-कल योरप में संस्कृत भाषा का बड़ा आदर है। वहाँ संस्कृत के अच्छे अच्छे विद्वान् भी है । उन्होंने भारतवर्ष के प्राचीन साहित्य के कितने ही ग्रन्थ-रत्नों का उद्धार किया है। उनकी गवेषणाओं से भारतवर्ष को बड़ा लाभ हुआ है। यह उन्हीं के संस्कृत साहित्य- परिशीलन का फल है कि प्राचीन भारतवर्ष की सभ्यता का इतिहास लिखा जा सका है। उनका ही अनुसरण करके डाक्टर भाऊ दाजी, राजेन्द्रलाल मित्र, डाक्टर भाण्डारकर आदि भारतीय विद्वानो ने भी भारतीय पुरातत्त्व का अनुशीलन किया। योरप में संस्कृत का प्रचार होने से तुलनात्मक भाषा-विज्ञान और धर्म-विज्ञान की उन्नति हुई। मच तो यह है कि यदि ये योरप के विद्वान् इतना परिश्रम न करते तो कदाचित् भारत- वामी अपने प्राचीन साहित्य का महत्त्व बहुत समय तक न समझते । 'सरस्वती' मे इन विद्वानों का परिचय समय समय पर दिया जा चुका है। यहां हम इनके कुछ कार्यों का सक्षिप्त विवरण देते है । संस्कृत भाषा का अध्ययन पहले पहल सर विलियम जोन्म ने किया। उसके पहले भी कुछ ईमाई धर्म प्रचारको ने संस्कृत का थोड़ा बहुत ज्ञान प्राप्त कर लिया था। हेनरिच नाथ नामक एक जर्मन ने, 1664 ईसवी में, ब्राह्मणो से शास्त्रार्थ करने के लिए संस्कृत का अध्ययन किया था। एक और जर्मन ईमाई, हेनक्मलेडन, जो यहाँ 1699 ईसवी में आया, सस्कृतज्ञ था। चार्ल्स विल्किन्म अवश्य संस्कृत के विद्वान थे। उन्होंने गीता का अनुवाद किया। वह अनुवाद मन 1785 ईसवी मे, इंगलैंड में प्रकाशित 1 हुआ। मर विलियम जोन्म कलकने में सुप्रीम कोर्ट के जज थे। उन्होंने 1784 ईमवी में बंगाल की एशियाटिक मोमाइटी की स्थापना की। 1792 ईसवी में उनका किया हुआ 'ऋतुसंहार' का अंगरेज़ी-अनुवाद प्रकाशित हुआ । 'मनुस्मृति' और 'अभिज्ञान- शाकुन्तल' का भी उन्होंने अँगरेजी में अनुवाद किया। इसके पहले योरप के विद्वानो को प्राचीन भाग्नवप की सभ्यता का बहुत ही कम जान था। मर बिलियम जोन्स ने ही उनमें प्राचीन भारत के विषय में ज्ञान प्राप्त करने की अभिलाषा उत्पन्न कर दी। एशियाटिक सोसाइटी से जो जर्नल निकलता है उसमे सर जोन्म ने कई गवेषणापूर्ण लेख लिखे। सबसे पहले उन्होंने ही यह प्रमाणित किया कि मेगास्थनीज का संड्रोकोटस और चन्द्रगुप्त दोनो एक ही व्यक्ति हैं और पालिबोथा पाटलिपुत्र का ही अपभ्रंश है । सन् 1794 ईसवी में उनकी मृत्यु हुई। उनके स्थान पर हेनरी कोलबुक साहब आये । कोलबुक साहब संस्कृत के अच्छे ज्ञाता थे। संस्कृत के सिवा वे अन्य भी अनेक