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पृष्ठ:माधवराव सप्रे की कहानियाँ.djvu/५६

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वे कदाचित् मुझे 'क्रूर और पाषाण-हृदयी पिता' कहेंगे। अपनी मुक्तता कराने के लिए अपने लड़के को मृत्यु के मुख में दे दिया, ऐसा भी वे कहते फिरेंगे। पर वे कुछ भी कहें और कुछ भी बकें, मेरा यही एक उत्तर है कि यदि मैं तेरा कहना मानता और तुझे सुली का राज्य दिला देता तो, 'मैंने अपने स्वदेश बंधुओं से विश्वासघात किया––ऐसा कहकर,' तू मुझे, मेरे पुत्र को और मेरे कुटुम्ब को अवश्य मार डालता। विश्वासघात जैसा निंदादोष माथे पर लेकर पशु के समान मरने की अपेक्षा स्वदेश के निमित्त अपने प्राण को अर्पण करना ही मुझे श्रेयस्कर जान पड़ता है। अब यदि हमारी जीत होगी तो परमेश्वर की कृपा से मुझे कई लड़के हो जायेंगे। पर यदि मेरा पुत्र स्वदेश-हितार्थ अपना जीव देने के लिए सिद्ध न होगा तो उसके जीने ही से क्या लाभ है? वह तो मुझे जीता और मरा समान ही मालूम होगा। फिर वह मेरा पुत्र कभी नहीं कहा जा सकता। इसलिए उसका मरना ही अच्छा है। यदि वह मृत्यु के मुख में पैर रखने का ढाढ़स नहीं कर सकता तो ऐसा कौन कहेगा कि उसका जन्म ग्रीस के स्वतन्त्र संस्थान में हुआ है। बस, इससे अधिक मुझे कुछ नहीं लिखना है।"

यह लेख मिलने के पश्चात् अल्लीपाशा ने झबेला के लड़के को बादशाह के पास भेज दिया। जब उसको वजीर के सामने खड़ा किया तो उसकी छोटी उमर और तेज से भरा हुआ चेहरा देखकर सब लोग अचम्भा करने लगे। कदाचित् कुछ भय बतलाने से यह मान जाय, ऐसा समझकर वजीर ने कहा––"अरे फोटू, तू तो बड़ा खूबसूरत मालूम होता है। पर तेरे बाप ने बड़ी निमकहरामी की है। इसलिए बादशाह ने तुझे आग में जला देने का हुक्म दिया है। बोल, अब क्या कहता है तू?"

शेर का बच्चा शेर ही होगा। इस बंदर-घुड़की से फोटू काहे को डरता। उसने तुरन्त ही जवाब दिया कि––"महाराज, ऐसा न