मानसरावर
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उसे झूले पर से उठाया, तो चिल्ला पड़ी। बालक को देह ठंडो हो गई थी और मुख
पर वह पीलापन आ गया था जिसे देखकर कलेजा हिल जाता है, कठ से आह निकल
भाती है और माखों से आंसू बहने लगते हैं। जिसने उसे एक बार देखा है, फिर
कभी नहीं भूल सकता। माधवी ने शिशु को गोद से चिमटा लिया. हालहि नीचे
उतार देना चाहिए था।
कुहराम मच गया। मां पच्चे को गले ले बनाये रोती थी, पर उसे जमीन पर
न सुलाती थी। क्या बातें हो रही थी और क्या हो गया। मौत को धोखा देने में
भानन्द पाता है। वह उस वक्त कभी नहीं आती जब लोग उसकी राह देखते होवे
हैं। रोगी जर सँभना जाता है, जब यह पथ्य लेने लगता है, उठने-बैठने लगता है,
घर भर खुशियां मनाने लदाला है, सबको विश्वास हो जाता है कि संकट टल गया,
उस वक्त घात में बैठी हुई मौत सिर पर आ जाती है । यही उसकी निठुर लीला है।
आशाओं के बारा लगाने में हम कितने दुशल है। यहां हम एक के बीज
भोकर सुधा के फल खाते है। अग्नि से पोयों को सींचकर शीतलहर में बैठते
है। हा मन्दबुद्धि ।
दिन-भर मातम होता रहा, बाप रोता था, मां तड़पती थी और माधवी बारी.
बारी से दोनों को सममाती थी। यदि अपने प्राण देकर वह मालक को जिला सकती
तो इस समय अपना धन्य भाग्य समझती। वह अहित का संकल्प करके यहां आई
थी और आज जब उसकी मनोकामना पूरी हो गई और उसे खुशी से फूला न समाना
चाहिए था, उसे उससे कहीं घोर गैड़ा हो रही थी जो अपने पुत्र की जेल-यात्रा से
हुई थौ । हलाने आई थी और खुद रोती जा रही थी माता का हृदय क्ष्या का
आगार है। उसे जलाओ तो उसमें से दया की हो सुगंध निकलती है। पीसो तो
दया का हो रस निकलता है । वह देवी है । विपत्ति की कर लीलाएँ भी उस स्वच
और निर्मल स्रोत को मलिन नहीं कर सकती।
पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/१०३
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