नागप Y भौषधियां खिलाई जाती, शार-बार शिशु को छाती से, लगाया जाता, यहाँ तक कि दुध उतर ही आता था, पर अबकी यह आयोजनाएँ न की गई। फूल सी बच्ची कुम्हलाती जाती थी। मां तो कभी उसी ओर ताकती भी न थी। हां, नाइन कभी चुटकियां बनाकर चुमकारती तो शिशु के मुख पर ऐसी क्ष्यनीय, ऐसी करुण वेदना मंकित दिखाई देती कि वह आँखें पोछती हुई चली जाती थी। वह से कुछ कहने- मुनने का साहस न पड़ता था। बड़ा लड़का सिद्ध मार-धार बहता-अम्मा, बच्चो को दो तो बाहर से खेला लाऊँ । परमा उ झिड़क देती थी। तीन-चार महीने हो गये। दामोदरदत्त रात को पानी पीने उठे तो देखा कि मालिका आग रही है। सामने ताख पर मोठे तेल का दीपक जल रहा था, लड़की टकटको पांघे उसी दीपक को ओर देखती थी, और अपना अंगूठा चूसने से मन थी। चुभ-चुभ की आवास भा रही थी। उसका मुख मुराया हुआ था, पर वह न रोती थी, न हाथ-पैर फेवाती थी, बस अंगूठा पीने से ऐशो मम थी मानों उसमें सुधा रस भरा हुआ है। वह माता के स्तनों को और मुँह भी नहीं फेरती थो, मानों उनका उन पर कोई अधिकार नहीं, उसके लिए वहाँ कोई आशा नहीं। बावू साहम को उस पर दया आई। इस वेचारी का मेरे घर जन्म लेने में क्या दोष है ? मुम पर या इसकी माता पर जो कुछ भी पदे, उसने इसका क्या अपराध ? हम क्षितनो निर्दयता कर रहे है कि एक कल्पित अनिष्ट के कारण इसका इतना तिरस्कार कर रहे हैं। माना कि कुछ अमगल हो भो जाय तो भो , क्या उसके भय से इसके प्राण ले लिये जायेंगे ? अगर अपराधी है तो मेरा प्रारब्ध है। इस नन्हें से बच्चे के प्रति हमारी कठोरता पया ईश्वर को अच्छी लगती होगी? उन्होंने उसे गोद में उठा लिया और उसका मुख चूमने लगे। सड़की को कदाचित् पहली बार सच्चे स्नेह का ज्ञान हुआ । हाथ-पैर उछालकर 'गूं-गू करने लगी और दीपक की और हाथ फैलाने लगी। उसे बीवन-ज्योति-सी मिल गई। प्रातःकाल दामोदरदत्त ने लड़की को गोद में उठा लिया और बाहर लाये । स्त्री ने बार-बार कहा---उसे पड़ी रहने दो, ऐसी कौन सी बड़ी सुन्दर है, अभागिनी रात- दिन तो प्राण खाती रहती है, मर भी नहीं जाती कि जान छूट जाय, किन्तु दामोदर- इत्त ने न माना, उसे बाहर लाये और अपने बच्चों के साथ बैठकर उसे खेलाने लगे। उनके मकान के सामने थोड़ी-सी जमीन पड़ी हुई थी। एड़ोस के किसी आदमी को
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