१४२ मानसरोवर सहसा वह चौंक पड़ा। देवी का मन्दिर आ गया था और उसके पीछे को और किसी घर से मधुर सझोत को धनि आ रही थी । उसको आश्चर्य हुआ। इस निर्जन • स्थान में कौन इस वक रेंग-रेलियों बना रहा है। उसके पैरों में पर-से लग गये, मन्दिर के पिछवाड़े जा पहुंचा। उसी घर से जिसमें मन्दिर को पुजारिन रहती थी, गाने छो आवाजे आती थीं। वृद्ध विस्मित होकर खिड़को के सामने खड़ा हो गया । विराय तले अंधेरा! देवी के मन्दिर के पिछवाड़े यह अन्धेर ? बूढे ने द्वार से झांका ; एक सजे हुए कमरे में मोमी पत्तियां झाड़ों में जल रही थीं, साफ-सुथरा फर्श विछा हुआ था और एक आदमी मेज पर बैठा हुआ गा रहा था। मेज पर शराब की बोतल और प्यालियां रखी हुई थीं। दो गुलाम मेज के सामने हाथ में भोजन के थाल लिये खड़े थे, जिनमें से मनोहर सुगन्ध की लपटें आ रही थी। बूढ़े यूनानी ने चिल्लाकर कहा---यही देश-द्रोहो है, यही देश-द्रोही है ! मन्दिर की दीवारों ने दुहराया-द्रोही है। बागीचे की तरफ से आवाज़ आई-द्रोही है। मन्दिर की पुजारिन ने घर में से सिर निकालकर, कहा-हा, द्रोहो है । यह देश-द्रोही उसो पुजारिन का बेटा पासोनियस था। देश में रक्षा के जो उपाय सोच जाते, शत्रुओं का दमन करने के लिए जो निश्चय किये जाते, उनकी सूचना वह ईरानियों को दे दिया करता था। सेनाओं को प्रत्येक गति को खबर ईरा- नियों को मिल जाती थी और उन प्रयनों को विफल बनाने के लिए वे पहले से तैयार हो जाते थे। यही कारण था कि यूनानियों की जान लड़ा देने पर भी विजय न होतो थी। इस देश-द्रोह के पुरस्कार में पासोनियस को मुहरों की थैलियां मिल जाती थी। इसी कपट से कमाये हुए धन से वह भोग-विलास करता था। उस समय जब कि देश पर घोर सकट पा हुआ था, उसने अपने स्वदेश को अपनी वासनाओं के लिए बेच दिया था। अपने विलास के सिवा उसे और किसी बात को चिन्ता न थी, कोई मरे या 'जिये, देश हे या जाय, उसको बला से ! केवल अपने कुटिल स्वार्थ के लिए देश को गरदन में गुलामी की वेरिया डलवाने पर तैयार था। पुजारिन अपने बेटे के दुरा. .
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