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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/१५८

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त्ला हो । तुम इसो काबिल हो कि तुम्हारी गरदने कुन्द छुरी से काटी जाय, तुम्हें पैरों तले रौंदा नाय. नादिर ने बात भी पूरी न कर पाई थी कि विद्रोहियों ने एक स्वर से चिल्लाकर कहा- लेला, लेला हमारी दुश्मन है, हम उसे अपनी मलका की सूस्त में नहीं देख सकते। " , नादिर ने ज़ोर से चिल्लाकर कहा-ज़ालिमो, जरा खामोश हो जामो, यह देखो वह फरमान है, जिस पर लैला ने अभी-अभी मुझसे पामरदस्ती दस्तखत कराये है। आज से गल्ले का महसूल घटाकर आधा कर दिया गया है और तुम्हारे सिर से महसूल का बोल पांच करोड़ कम हो गया है। हजारों आदमियों ने शोर मचाया----यह महसूल बहुत पहले बिलकुल माफ हो जाना चाहिए था। हम एक कौती नहीं दे सकते। लेला, लैला, हम उसे अपनी मलका को सूरत में नहीं देख सकते। अप बादशाह झोध से कांपने लगा। लैला ने साल-त्र होकर कहा अगर रिमाया को यही मरजी है कि मैं फिर डफ बजा-अजाकर नातो फिरूं तो मुझे कोई सज नहाँ, मुझे यकीन है कि मैं अपने गाने से एक बार फिर इनके दिलों पर डुकू- मत कर सकती हूँ। नादिर ने उत्तेजित होकर कहा-~-लैला, मैं रिमाया को तुनुकमिजानियों का गुलाम नहीं । इससे पहले कि मैं तुम्हें अपने पदलू से जुदा कर, सेहरान की भलियाँ खून से लाल हो जायेंगी। मैं इन बदमाशों को इनको शारत का मजा चखाता हूँ नादिर ने मीनार पर चढ़कर खतरे का बण्टा बजाया । सारे तेहरान में उसकी आवाज गूंज उठी, पर शादी फौज का एक भी सिपाही न नज़र आया । नादिन ने दोबारा घण्टा बनाया, आकाश-मण्डल उसको हार से कम्पित हो गया, तारागण झाप उठे, पर एक भी सैनिक न निकला। नादिर ने तय तीसरी पार भण्टा बजाया, पर उनका भी उत्तर केवल एक क्षोण प्रतिध्वनि ने दिया, मानों किसो मरनेवाले को अन्तिम प्रार्थना के शब्द हो। नादिर ने माथा पीट लिया। समझ गया कि बुरे दिन आ गये। अब भो लैला को जनता के दुराग्रह पर बलिदान करके वह अपनी राजसत्ता की रक्षा कर सकता था, पर लैला उचे प्राणों से प्रिय थी। उसने छत पर आकर लैला का हाथ पकर