पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/१६६

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VW उसको तसवीर थी, उसकी महक थी, लेकिन लैला न थी। मकान सूना मालूम होता धा, जैसे ज्योति-हीन नेत्र। नादिर का दिल भर आया। उसकी हिम्मत न पड़ी कि किसी से कुछ पूछे। हृदय इतना कातर हो गया कि हतबुद्धि को भांति वहीं फर्श पर बैठकर बिलख-बिलस रोने लगा। जब सारा आसू थमे, तब उसने बिस्तर को सूंघा कि शायद लैला के स्पर्श की कुछ गध आये, लेकिन खस और गुलाब को महरू के सिवा और कोई सुगन्ध न थी। सहसा उसे तकिये के नीचे से बाहर निकला हुआ एक काग्रज का पुर्जा दिखाई दिया । उसने एक हाथ से कलेजे को संभालकर पुर्जा निकाल लिया, और सहमी हुई सांखों से उसे देखा । एक निगाह में सब कुछ मालूम हो गया। यह नादिर की किस्मत का फैसला था। नादिर के मुंह से निकला-हाय लेला। और वह मूर्छित होकर जमीन पर गिर पड़ा। लैला ने पुणे में लिखा था-'मेरे प्यारे नादिर, तुम्हारी रौला तुमसे जुदा होती है-हमेशा के लिए । मेरो तलाश मत करना, तुम मेरा सुरराय द पाओगे । मैं तुम्हारो मुहब्बत को कौंडो थो, तुम्हारी बादशाहत को भूखो नहीं। भाग एक हफ्ते से देख रहो हूँ, तुम्हारो निगाह फिरी हुई है। तुम मुमते नहीं बोलते, मेरी तरफ मात्र उठाकर नहीं देखते। मुझसे बेजार रहते हो। मैं किन- छिन अरमानों से सुम्हारे पास जाती हूँ और कितनो मायूस होकर लौटतो हूँ, इसका तुम अन्दाज़ नहों पर सकते । मैंने इस सना लायन कोई काम नहीं किया। मैंने जो कुछ किया है, तुम्हारी ही भलाई के खमाल से । एक हफ्ता मुझे रोते गुजर गया। मुझे मालूम हो रहा है कि मम मैं तुम्हारी नजरों से गिर गई, तुम्हारे दिल से निकाल दो गई। आह ! ये पांच साल हमेशा याद रहेंगे, हमेशा तड़पाते रहेंगे। यही हत लेकर आई थो, यही लेकर जाती हूँ ; पांच साल मुहब्बत के मजे उठाकर जिन्दगी भर के लिए हसरत का दाग लिये जातो हूँ। लोला मुहब्बत की लोंडो थो, जब मुह - व्वत न रहो, तप सैला क्यों कर रहतो ? रुखसत ।' --