मुक्तिधन
अरमान को लिये हुए क्यों दुनिया से जाऊँ । खुदा तुमको इस नेको को जज़ा (फल)
देगा । मातृभक्ति मामीणों का विशिष्ट गुण है । रहमान के पास इतने रुपये कहा ये
कि हाल के लिए काफ़ी होते ; पर माता की आज्ञा कैसे टालता ? सोचने लगा, किसो
से उधार ले । कुछ अबको जच पेरकर दे दूंगा, कुछ अगले साल चुका देगा।
अल्लाह के फल से ऊख ऐसी हुई है कि कमी न हुई थी । यह मां की दुआ हो का
तो फल है । मगर किससे लूँ ? कम-से-कम २००) हों, तो काम चळे । किसो महा.
जन से जान-पहचान भी तो नहीं है। यहाँ जो दो-एक बनिये लेन-देन करते हैं, वे
तो असामियों को गरदन ही रेतते हैं । चलूं, लाला दाऊदयाल के पास । इन सबसे
तो यही अच्छे हैं । सुना है, वादे पर रुपये लेते हैं, किसी तरह नहीं छोड़ते, लोनी
चाहे दीवार को छोड़ दे, दीमक चाहे लकी को छोड़ दे, पर वादे पर रुपये न मिले,
तो वह असामियों को नहीं छोड़ते । बात पीछे करते हैं, नालिश पहले। हां, इतना
है कि असामियों को आँख में धूल नहीं झोंकते, हिसाब-किताब साफ रखते हैं । कहै
दिन यह इसी सोच-विचार में पड़ा रहा कि उनके पास जाऊं या न जाऊँ । अगर कहाँ
वादे पर साये न पहुंचे तो ? बिना नालिश किये न मानेंगे, घर-बार, बैल-मधिया, सब
नीलाम करा लेंगे। लेकिन जब कोई पश न चला, तो हारकर दाऊदयाल के हो पास
गया, और रुपये कर्ज मांगे।
दाऊ-तुम्हीं ने तो मेरे हाथ गऊ बेची थी न !
रहमान-हाँ हजूर।
दाऊ-रुपये तो तुम्हें दे देगा, लेकिन मैं वाद पर रुपये लेता हूँ। अगर वादा
पूरा न किया, तो तुम जानो । फिर मैं जरा भो रिभायत न करूंगा। बताओ, कप
दोगे?
रहमान ने मन में हिसाब लगाकर कहा-सरकार, दो साल की मियाद रख लें।
दाऊ. - अगर दो साल में न होगे, तो ब्यान को दर ३२) सैकड़े हो जायगी।
तुम्हारे साथ इतनी सुरोक्त करूँगा कि नालिश न करूंगा।
रहमान-जो चाहे कोजिएगा । हजूर के हाथ में हो तो हूँ।
रहमान को २००) के १८०) मिले। कुछ लिखाई कट गई, कुछ नजराना
निकल गया, कुछ दलाली में गया। घर भाया, थोड़ा-सा गुड़ रखा हुआ था, उसे
चेचा, और स्त्री को-समझा बुझाकर माता के साथ हज को चला।
भ
पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/१७०
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