पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/१७५

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रहमान काप उठा । बोला-यहां का हाल तो देख रहे हो न ? चपरासो-यहाँ हाल-हवाल सुनाने का काम नहीं। ये चकमे किसी और को ऐना । सात सौ रुपये ले चलो, और चुपके से गिनकर चले आओ। रहमान-जमादार, सारी ऊख जल गई। अल्लाह जानता है, अपकी कौड़ो- कौड़ो अवाक कर देता। चपरासी-~में यह कुछ नहीं जानता। तुम्हारी ऊख का किसी ने ठेका नहीं 'लिया । अभी चलो । सरकार बुला रहे हैं। यह कहकर चपरासी उसका हाथ पकड़कर घसीटता हुभा चला। गरीब को पर में जाकर पगड़ी बांधने का भी मौका न दिया। ( ५ ) पांच कोस का रास्ता कट गया, और रहमान ने एक बार भी सिर न उठाया । बस, रह-रहकर 'या पली मुश्किलकुशा ।' उसके मुंह से निकल जाता था। उसे अब इसी नाम का भरोसा था। यही जप उसकी हिम्मत को संभाले हुए था, नहीं तो शायद वह वहीं गिर पड़ता। वह नैराश्य को उस दशा को पहुँच गया था, जब - मनुष्य की चेतना नहों, उपचेतना उसका शासन करतो है। दाऊदयाल द्वार पर टहल रहे थे। रहमान जाकर उनके कंदमों पर गिर पड़ा, और योगा-खुदावद, षड़ी विपत पड़ी हुई है । अल्लाह जानता है, कहीं का नहीं रहा। दाऊ-क्या सब ऊख जल गई ? रहमान --हजूर सुन चुके हैं क्या ? सरकार, जैसे चिसो ने खेत में झाडू दी हो । गाँव के ऊपर ऊस लगी हुई थो, गरीवपरवर, यह गैबी आफत न पड़ी होती, तो और तो नहीं कह सकता, इजूर से उरिन हो जाता। दाऊ-तो अब क्या सगह है ? देते हो कि नालिश ही कर दूं? रहमान-हजूर मालिक हैं, जो चाहें, करें। मैं तो इतना ही जानता हूँ कि हर के रुपये सिर पर हैं, और मुझे कौड़ी-कौड़ो देने हैं। अपनी सोची नहीं होती। दो बार वादे किये, दोनों बार झूठा पड़ा । अब वादा न करूँगा। जब जो कुछ मिलेगा, "लाकर हजूर हे कदमों पर रख दूंगा। मिहनत-मजूरों से, पेट भौर तन काटकर, जिस तरह हो सकेगा, आपके रुपये भरूँगा। 1