पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/१९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भौति जो कदम उठाता था वह सधा हुआ, जो हाथ दिखलाता था वह जमा हुआ। लोग उसे पहले तुच्छ समझते थे, अम उससे ईर्ष्या करने लगे, उन पर फातियाँ उड़ानी शुरू की। लेकिन आपटे इस कला में भी एक ही निकला । वात मुंह से निकली और उसने जवाब दिया, पर उसके जवाब में मालिन्य या कटुना का लेश भी न होता था। उसका एक-एक शब्द सरल, स्वच्छ, चित्त को प्रसन्न करनेवाले भावों में डूमा होता था। मिस जोशी उसकी वाक्य-चातुरी पर फूल उठती थी। सोराबजी-आपने किस युनिवर्सिटी में शिक्षा पाई थी ? भापटे-युनिवर्सिटी में शिक्षा पाई होती तो आज मैं भी शिक्षा विभाग का अध्यक्ष न होता। मिसेज भरूचा-मैं तो आपको भयङ्कर जन्तु समझती थी। आपटे ने मुसकिराकर कहा-आपने मुझे महिलाओं के सामने न देखा होगा । सहसा मिस जोशी अपने सोने के कमरे में गई और अपने सारे वस्त्राभूषण उतार फेंके। उसके मुख से शुभ्र-संकल्प का तेज निकल रहा था। नेत्रों से देवी ज्योति प्रस्फुटित हो रही थी, मानों किसी देवता ने उसे वरदान दिया हो। उसने सजे हुए कमरे को घृणा के नेत्रों से देखा, अपने आभूषणों को पैरों से ठुकरा दिया, और एक मोटो साफ साड़ी पहनकर बाहर निकली। आज प्रातःकाल ही उसने यह साड़ी मंगा ली थी। उसे इस नये वेष में देखकर सब लोग चकित हो गये । यह कायापलट कैसी । सहसा किसी को भांखों को विश्वास न आया। किन्तु मिस्टर जौहरी बगलें बजाने लगे। मिस जोशो ने इसे फँसाने के लिए यह कोई नया स्वांग रचा है। मिस जोशी मेहमानों के सामने आकर बोली- मित्रो। आपको याद है, परसों महाशय आपटे ने मुझे कितनी गालियां दी थीं। यह महाशय खड़े हैं । आज मैं इन्हें उस दुर्व्यवहार का दण्ड देना चाहती हूँ। मैं कल इनके मकान पर जाकर इनके जीवन के सारे गुप्त रहस्यों को जान आई। यह जो जनता की भीड़ में गरजते फिरते हैं, मेरे एक ही निशाने में गिर पड़े। मैं उन रहस्यों को खोलने में अब विलम्ब न करूंगी, आप लोग अधीर हो रहे होंगे। नैने जो कुछ देखा, वह इतना भयकर है कि उसकावृत्तान्त सुनकर शायद आप लोगों को मूळ आ जायगी। अब मुझे लेशमात्र भी संदेह नहीं है कि यह महाशय पक्के विद्रोही हैं: ? . -