विश्वास चार हौ बजे से मेहमान लोग आने लगे। नगर के बड़े बड़े अधिकारी, बड़े-बड़े. व्यापारी, बड़े-बड़े विद्वान् , प्रधान समाचार-पत्रों के सम्पादक, अपनी-अपनी महिलाओं के साथ आने लगे। मिस जोशी ने आज अपने अच्छे-से-अच्छे वस्त्र और आभूषण निकाले थे, जिधर निकल जाती थी, मालूम होता था, अरुण,प्रकाश को छटा चलो आ रही है । भवन में चारों तरफ से सुगध की लपटें आ रही थी और मधुर संगीत की ध्वनि हवा में गूंज रही थी। पांच बजते-बजते मिस्टर जौहरी आ पहुँचे और मिस जोशो से हाथ मिलाते हुए मुसकिराकर बोले-जी चाहता है, तुम्हारे हाथ चूम लूं । अब मुझे विश्वास हो गया कि यह महाशय तुम्हारे पजे से नहीं निकल सकते। मिसेज़ पेटिट बोली-मिस जोशो दिलों का शिकार करने हो के लिए बनाई गई हैं। मिस्टर सोरावजी-मैंने सुना है, भापटे बिलकुल गवार-सा आदमी है। मिस्टर भरूचा--किसी युनिवर्सिटी में शिक्षा ही नहीं पाई, सभ्यता कहीं से आती। मिसेज़ भरूचा-आज उसे खूब बनाना चाहिए। महन्त वीरभद्र डाढ़ी के भीतर से बोले -मैंने सुना है, नास्तिक है, वर्णाश्रम-धर्म का पालन नहीं करता। मिस जोशी-नास्तिक तो मैं भी हूँ। ईश्वर पर मेरा भी विश्वास नहीं है। महन्त-आप नास्तिक हों, पर आप कितने हीनास्तिकों को आस्तिक बना देती हैं। मिस्टर जौहरो-आपने लाख रुपये की बात कही महन्तजो। मिसेज़ भरुचा-क्यों महन्तजी, आपको मिस जोशी हो ने आस्तिक बनाया है क्या ? सहसा आपटे लोहार के बाल को उँगली पकड़े हुए भवन में दाखिल हुए । वह पूरे फैशनेबुल रईस बने हुए थे। वालक भी किसी रईस का लड़का मालूम होता था। भाज आपटे को देखकर लोगों को विदिन हुआ कि वह कितना सुन्दर, समोला आदमी है । मुख से शौर्य टपक रहा था, पोर-पोर से शिष्टता मळकतो थी, मालूम होता था, वह इसी समाज में बचपन से पला है। लोग देख रहे थे कि वह कहीं चूके और तालियां बजाये, कहाँ फिसले और कहकहे लगायें, पर आपटे मॅजे हुए खेलाड़ो को
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