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पर बांधे, पमर से तलवार लटकाये रविशों में टहल रहे थे। स्त्रियां सफ़ेद बुरके
आहे, परी की जूतियां पहने बेंचों और कुरसियों पर बैठी हुई थी। दाऊद सबसे
अलग हरी-हरी घास पर लेटा हुआ सोच रहा था कि वह दिन कब आवेगा, जब
हमारी जन्मभूमि इन अत्याचारियों के पजे से छूटेगी। वह अतीत काळ को कल्पना
कर रहा था, जब ईसाई स्त्री और पुरुष इन रविशों में टहलते होंगे, जब यह स्थान
ईसाइयों के परस्पर वाग्विलास से गुलधार होगा।
सहसा एक मुसलमान युवक आवर दाऊद के पास बैठ गया। वह इसे सिर से
-पाव तक अपमान-सूचक दृष्टि से देखकर मोला-क्या अभी तक तुम्हारा हृदय इस-
लाम को ज्योति से प्रकाशित नहीं हुआ ?
दाऊद ने गम्भीर भाव से कहा-इसलाम की ज्योति पर्वत-गों को प्रकाशित
कर सकती है । अँधेरी घाटियों में उसका प्रवेश नहीं हो सकता।
उस मुसलमान अरमो का नाम जमाल था। यह आक्षेप सुनकर तीखे स्वर में
बोला-इससे तुम्हारा क्या मतलब है ?
दाऊद इससे मेरा मतलय यही है कि ईसाइयों में जो कोग उच्च श्रेणी के है,
वे बागीरों और राज्याधिकारों के लोभ तथा राजदड के भय से इसलाम को शरण
मा सकते हैं, पर दुर्बल और दीन ईसाइयों के लिए इसलाम में वह आसमान की बाद-
शाहत कहाँ है, जो हजरत मसीह के दामन में उन्हें नशीव होगी। इसलाम का प्रचार
तलवार के बल से हुआ है, सेवा के बल से नहीं।।
जमाल अपने धर्म
अपमान सुनकर तिलमिला उठा। गरम होकर बोला-
यह सर्वथा मिथ्या है। इसलाम की शक्ति उसका आंतरिक भ्रातृत्व और साम्य है,
तलवार नहीं।
दाऊद-इसलाम ने धर्म के नाम पर जितना रक्त बहाया है, उसमें उसको सारो
मसजिद दूब जायेंगी।
जमाल-तलवार ने सदा सत्य की रक्षा की है।
दाऊद ने अविचलित भाव से कहा-जिसको तलवार का आश्रय लेना पड़े, वह
सत्य ही नहीं।
जमाल जातीय गर्घ से उन्मत होकर बोला जग तक मिथ्या के भक्त रहेंगे, तब
तक तल्वार की जरूरत भी रहेगी।
पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/१९५
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