पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/१९६

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क्षमा

दाऊद - तम्बार का मुँह ताकनेवाला सत्य हो मिथ्या है। अरब ने तलवार के कब्जे पर हाथ रखकर कहा-खुदा को क्रसम, अगर तुम निहत्थे न होते, तो तुम्हें इसलाम की तौहोन करने का मजा चखा देता। दाऊद ने अपनी छाती में छिपाई हुई कटार निकालकर कहा-नहीं, मैं निहत्या नहीं हूँ। मुसलमानों पर जिस दिन इतना विश्वास करूँगा, उस दिन ईसाई न रहूँगा। तुम अपने दिल के अरमान निकाल लो। दोनों ने तलवारें खींच ली । एक दूसरे पर टूट पड़ा। अरब को भारी तलवार ईसाई की हलमी कार के सामने शिथिल हो गई । एक सर्प की भाँति फन से चोट करती थी, दूसरी नागिन की भाँति उपती थी। एक लहरों को भांति लपकती थी, दूसरी जल की मछलियों की भाँति चमकती थी। दोनों योद्धाओंमें कुछ देर तक चोटें होती रहो । सइसा एक बार नागिन उछलकर बम के अन्तस्तल में जा पहुँची। वह भूमि पर गिर पड़ा। ( ३ ) नमाल के गिरते हो चारों तरफ से लोग दौड़ पड़े। वे दाऊद को घेरने को चेष्टा करने लगे। दाऊद ने देखा, लोग तलवारें लिये दौड़े चले आ रहे हैं। प्राण लेकर भागा। पर जिधर भाता था, सामने बाग की दीवार रास्ता रोक लेतो थी। दीवार ऊँची थी, उसे फांदना मुश्किल था । यह जीवन और मृत्यु का संग्राम या। कहीं शरण की आशा नहीं, सही छिपने का स्थान नहीं। उधर अरमों को रक-पिपासा प्रतिक्षण तीव्र होती जाती थी। यह केवल एक अपराधो को दह देने की चेष्टा न थी । जातीय अपमान का बदला था । एक विजित ईसाई की यह हिम्मत लिभरक पर हाथ उठावे ! ऐसा अनर्थ । जिस तरह पीछा करनेवाले कुत्तों के सामने गिलहरी इधर-उधर दौड़ती है, किसी वृक्ष पर चड़ने की कार बार चेष्टा करती है, पर हाथ-पांव फूल पाने के कारण पार-बार गिर पड़ती है, वही दशा दाऊद की थी। दौड़ते-दौड़ते उसका दम फूल गया ; पैर मन मन-भर के हो गये । कई बार जो में आया, इन सब पर टूट पड़े, और जितने महंगे प्राण विक सकें, उतने महंगे बेचे । पर शत्रुओं को संख्या देखकर हतोत्साह हो जाता था। देना, दौड़ना, पकड़ना का शोर मचा हुआ था। कभी-कभी पीछा करने वाले इतने