रामा मची हुई है, शत्रुओं का दल मशालें लिये शादियों में घूम रहा है ; नाकों पर भी पहरा है, कहीं निकल भागने का रास्ता नहीं है। दाजर एक वृक्ष के नीचे खड़ा होकर सोचने लगा कि अब क्यों कर जान बचे। उसे अपनी जान को वैसी परवा न थी। वह जीवन के सुख दुख सब भोग चुका था। अगर उसे जीवन को लालसा थी, तो केवल यही देखने के लिए कि इस समाम का अन्त क्या होगा। मेरे देशवासी हतोत्साह हो जायेंगे, या अदम्य धैर्य के साथ संप्राम-क्षेत्र में अटल रहेंगे। जय रात अधिक हो गई, और शत्रुओं को घातक चेष्टा कुछ कम न होतो देख पड़ी, तो दाऊद खुदा का नाम लेकर हाड़ियो से निकला और दवे-पाव, वृक्षो को आड़ में, आदमियों की नजरें बचाता हुमा, एक तरफ को चला। वह इन मालियों से निकल घर बस्ती में पहुँच जाना चाहता था। निर्जनता किसी को आइ नहीं कर सकती। वस्ती का जनवाहुल्य स्वय आड़ है। कुछ दूर तक तो दाऊद के मार्ग में कोई बाधा न उपस्थित हुई, बन के वृक्षों ने रमझी रक्षा को ; चिन्तु जब वह असमतल भूमि से निकलकर समतल भूमि पर आया, तो एक अरब को निगाह उस पर पड़ गई। उसने ललकारा । दाऊर भागा। कातिल आगा जाता है। यह आवाज हवा में एक हो पार गूंजो, और क्षण भर में चारों तरफ से अरबों ने उसका पीछा किया । सामने बहुत दूर तक आवादो का नामोनिशान न था। बहुत दूर पर एक धुंधला-सा दीपक टिमटिमा रहा था। किसी तरह वहाँ तक पहुँच जाऊँ। वह उन दोपक को भोर इतनो तेजी से दोह रहा पा, मानों वहां पहुंचते हो अभय पा जायगा । आशा उसे उड़ाये लिये जातो थो । अरबों का समूह पोछे छूट घया, मशालों को ज्योति निष्प्रभ हो गई। केवल तारागण उसके साथ दौड़े चले आते थे । अन्त को वह आशामय दोरक सामने आ पहुँचा। एक छोटा-सा फूस का महान था। एक बूढ़ा भस्व प्रमोन पर बैठा हुआ, रेहल पर कुरान रखे उसो दीपक के मन्द प्रकाश में पढ़ रहा था। दाऊद आगे न जा सका । उसकी हिम्मत ने जवाब दे दिया। वह वहीं शिपिल होकर गिर पड़ा। रास्ते को थकन घर पहुँचने पर मालूम होतो है। अरव ने उठकर पूछा-तू कौन है ? दाऊद-एक गरीष ईसाई । मुसोबत में फंस गया हूं। अब आप हो शरण दें, तो मेरे प्राण बच सरसे हैं। अरम-खुदा-पाक तेरी मदद करेगा। तुम पर क्या मुसीबत पड़ी हुई है?
पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/१९८
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