-IWVIT
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दाऊद-हरता हूँ, कहाँ कह तो आप भी मेरे खून के प्यासे न हो जायें।
अरब जब तू मेरी शरण में आ गया, तो तुझे मुझसे कोई शक न होनी
चाहिए। हम मुसलमान है, जिसे एक बार अपनी शरण में लेते हैं, उसको जिंदगी-
भर रक्षा करते हैं।
एक मुसलमान युवक की हत्या कर डाली है।
वृद्ध अरब सा मुख क्रोध से विकृत हो गया, बोला- उसका नाम ?
दाऊद--- उसका नाम जमाल था।
भरम सिर पकड़कर वहीं बैठ गया। उसकी आँखें सुर्ख हो गई; गरदन की नसे
तन गई मुख पर अलौकिक तेजस्विता की आभा दिखाई दो ; नयने फड़कने लगे।
ऐसा मालूम होता था कि उसके मन में भीषण द्वन्द्व हो रहा है, और वह समस्त विचार-
शक्ति से अपने मनोभावों को रवा रहा है। दो-तीन मिनट तक वह इसी उन अवस्था
में बैठा धरती की और ताकता रहा । अन्त को अवरुद्ध कण्ठ से पोला- नहीं, नहीं,
शरणागत की रक्षा करनी ही पड़ेगी। आह ! जालिम ! तू जानता है, मैं कौन हूँ?
मैं उसी युवक का अभागा पिता हूँ, जिसकी आज तूने इतनी निर्दयता से हत्या की है।
तू मानता है, तूने मुझ पर जितना बड़ा अत्याचार किया है ? तूने मेरे खानदान का
निशान मिटा दिया है। मेरा चिराय गुल कर दिया ! आइ, जमाल मेरा इकलौता बेटा
था। मेरी सारी अभिलाषाएँ उसी पर निर्भर थीं। वह मेरी आँखों का उजाला, सुन्न
अन्धे का सहारा, मेरे जीवन का माधार, मेरे जर्जर शरीर का प्राण था। अभी-अभी उसे
क्रन की गोद में लिटाखर आया हूँ। गाह, मेरा शेर आज खा के नीचे सो रहा है।
ऐसा दिलेर, ऐसा दीनदार, ऐसा पजीला जवान मेरी क्रीम में दूसरा न था। जालिम, तुझे
उस पर तलवार चलाते जरा भी दयान आई। तेरा पत्थर का कलेजा जरा भी न पसीजा!
तू जानता है, मुझे इस वक तुझ पर कितना गुस्सा आ रहा है ? मेरा जी चाहता है कि
अपने दोनों हाथों से तेरो गरदन पकड़कर इस तरह क्ष्वाऊँ कि तेरी प्रधान बाहर निकल
आवे, तेरी आँख कीदियों की तरह बाहर निकल पड़े। पर नहीं, तूने मेरी शरण ली है,
वर्तव्य मेरे हाथों को माँधे हुए है ; क्योंकि हमारे रसूल-पाक ने हिदायत की है
कि जो अपनी पनाह में भावे, उस पर हाथ न उठाओ। मैं नहीं चाहता कि नयी
के हुक्म को तोड़कर दुनिया के साथ अपनी आक्रवत भी बिगाड़ लूँ। दुनिया तूने
विणाकी, दीन अपने हाथों विगाहूँ ? नहीं । सब करना मुश्किल है । पर सब करूंगा।
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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/१९९
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