पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/२०१

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ली, और दबे पांव उस कोठरी के द्वार पर आकर खड़ा हो गया, जिसमें दाऊद छिपा हुआ था। तलवार को दामन में छिपाकर उसने धीरे से द्वार खोला । दाऊद टहल रहा था। बूढ़े अरब का रौद्र रूप देखकर दाऊद उसके मनोवेग को ताड़ गया। उसे बूढ़े से सहानुभूति हो गई। उसने सोचा, यह धर्म का दोष नहीं, जाति का दोष नहीं। मेरे पुत्र को किसी ने हत्या की होतो, तो कदाचित् मैं भी उसके सून का प्यासा हो जाता। यही मानव-प्रकृति है। अरम ने कहा- दाऊद, तुम्हें मालूम है, बेटे की मौत का कितना गम होता है ? दाऊद-इसका अनुभव तो नहीं है, पर अनुमान कर सकता हूँ। अगर मेरी जान से आपके उस गम का एक हिस्सा भी मिट सके, तो कीजिए, यह सिर हाजिर है। मैं इसे शौक से आपकी नजर करता हूँ। आपने दाऊद का नाम सुना होगा। अरब-क्या पीटर का बेटा ? दाऊद-जी हाँ ! मैं वही बदनसीब दाऊद हूँ। मैं केवळ आपके बेटे का घातक ही नहीं, इसलाम का दुश्मन हूँ। मेरी जान लेकर आप जमाल के खून का पदळा हो न लेंगे, बल्कि अपनी जाति और धर्म को सच्चो सेवा भी करेंगे। शेख हसन ने गम्भीर भाव से कहा- दाऊद, मैंने तुम्हें माफ किया। मैं जानता हूँ, मुसलमानों के हाथ ईसाइयों को बहुत तकलीफें पहुँची हैं ; मुसलमानों ने उन पर बड़े-बड़े अत्याचार किये हैं, उनको स्वाधीनता हर ली है। लेकिन यह इसलाम का नहीं, मुसलमानों का क्रसर है। विषय-गर्व ने मुसलमानों को मति हर की है। हमारे पाक नबी ने यह शिक्षा नहीं दी थी, जिस पर आज हम चल रहे हैं। वह स्वयं क्षमा और दया का सर्वोच्च आदर्श हैं। मैं इसलाम ले नाम को बट्टा न लगाऊँगा। मेरी ऊँटनी ले लो, और रातो-रात जहाँ तक भागा जाय, भागो। कहीं एक क्षण के लिए भी न ठहरना। अरषों को तुम्हारी बू भो मिल गई, तो तुम्हारी जान को खैरियत नहीं । जाओ, तुम्हें खुहाएराक घर पहुँचावे । बूढे शेख हसन और उसके बेटे जमाल के लिए खुदा से दुआ किया करना ।

दाऊद खैरियत से घर पहुँच गया; खिन्तु अब वह दाऊद न था, जो इसलाम को जड़ से खोदकर फेंक देना चाहता था। उसके विचारों में गहरा परिवर्तन हो गया था । अब वह मुसलमानों का आदर करता और इसलाम का नाम इज्जत से लेता था।