पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/२००

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दण्ड 5 ताकि नबी के सामने अखि नोचो न करनी पड़े। आ, घर में आ। तेरा पीछा करने- वाले वह दौड़े आ रहे हैं। तुझे देख लेंगे, तो फिर मेरी सारी मिन्नत समाजत तेरो जान न बचा सकेगी। तू नहीं जानता कि अरब लोग खुन कभी माफ नहीं करते। यह कहकर अरब ने दाऊद का हाथ पकड़ लिया, और उसे घर में ले जाकर एक कोठरी में छिपा दिया। वह घर से बाहर निभला हो था कि भावों का एक दल उसके द्वार पर भा पहुँचा। एक आदमी ने पूछा-क्यों शेख हसन, तुमने इधर से विधी को भागते देखा है ? 'हाँ, देखा है।' 'उसे पकड़ क्यों न लिया? बहो तो जमाक का कातिल था।' 'यह बानकर भो मैंने उसे छोड़ दिया।' 'ऐ गाव खुदा का ! यह तुमने क्या डिया ? जमाल हिसाध के दिन हमारा दामन पढ़ेगा, तो हम क्या जवाब देंगे?' 'तुम कह देना कि तेरे माप ने तेरे कातिष्ठ को माफ कर दिया।' 'अरव ने कभी कातिल का मन नहीं माफ किया।' 'यह तुम्हारी जिम्मेदारो है, उसे अपने सिर पर्यो लूँ ?' अरषों ने शेष हसन से ज्यादा हुजत न को, कातिल की तलाश में दौड़े। शेख हसन फिर चटाई पर बैठकर कुरान पढ़ने लगा। लेकिन उसका मन पढ़ने में न लगता था। शत्रु से बदला लेने को प्रवृत्ति भरयों को प्रकृति में बद्धमुल होती थी। जून का बदला खून था। इसके लिए खून की नदियां बह जाती थी, कमीले के क्रवोले मर मिटते थे, शहर के शहर वोरान हो गये थे। उस प्रवृत्ति पर विजय पाना शेख हसन को असाध्य-सा प्रतीत हो रहा था। पार-पार प्यारे पुत्र को सूरत उसकी आंखों के आगे फिरने लगती थी, बार-बार उसके मन में प्रल उत्तेजना होती थी कि चलकर दाऊद के खून से अपने क्रोध की आग बुझाऊँ। अरब वीर होते थे। घटना-मरना उनके लिए कोई असाधारण यात न थी। मरनेवाला के लिए वे आसुओं की कुछ बूंदें हायर फिर अपने काम में प्रवृत्त हो जाते थे। वे मृत व्यक्ति को स्मृति को केवल उसी दशा में जोवित रसते थे, जब उनके खून का बदला लेना होता था। अन्त को शेख हसन अधीर हो उठा। उनको भय हुमा कि अब मैं भपने ऊपर काबू नहीं रख सकता। उसने तलवार म्यान से निकाल