विश्वास २१ मिस्टर जौहरी-मिस जोशी। प्रेम उदार नहीं होता, क्षमाशील नहीं होता । मेरे लिए तुम सर्वस्व हो, जब तक मैं समझता हूँ कि तुम मेरी हो। अगर तुम मेरी नहीं हो सकती तो मुझे इसको क्या चिन्ता हो सकती है कि तुम किस दशा में हो ? मिस जोशो-यह आपका अन्तिम निश्वय है ? मिस्टर जौहरी 1-अगर मैं कह दूं कि हां, तो ? मिस जोशी ने सीने से पिस्तौल निकालकर कहा-तो पहले आपको लाश अमोन पर फड़कतो होगो और आपके बाद मेरी । बोलिए, यह आपका अन्तिम निश्चय है ? यह कहकर मिस जोशी ने नोहरी की तरफ़ पिस्तौल सोधा किया। जौहरी कुरसो से उठ खड़े हुए और मुसकिराकर बोले- क्या तुम मेरे लिए कभी इतना साहस कर सकतो थो? दापि नहीं । अव मुझे विश्वास हो गया कि मैं तुम्हें नहीं पा सकता। जाओ, तुम्हारा आपटे तुम्हें मुधारक हो । उस पर से अभियोग उठा लिया जायगा । पवित्र प्रेम ही में यह साहस है। अब मुझे विश्वास हो गया कि तुम्हारा प्रेम पवित्र है। अगर कोई पुराना पापी भविष्य- वाणी कर सकता है तो मैं कहता हू वह दिन दूर नहीं है, जब तुम इस भवन को स्वामिनी होगी। आपटे ने मुझे प्रेम के क्षेत्र में हो नहीं, राजनीति के क्षेत्र में भी परास्त कर दिया। सच्चा आदमो एक मुलाकात में हो जोवन को बदल सकता है, आत्मा को जगा सकता है और अज्ञान को मिटार प्रकाश को ज्योति फळ समता है, यह आज सिद्ध हो गया ।
पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/२२
दिखावट