विचित्र होली
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कोठी से रग-पिचकारी वगैरह लाये। ( साईन से ) क्यों घसीटे, भाष तो बड़ो
पहार है।
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घसीटे-बसी बहार है, बड़ी बहार है, होली है।
उजागर ---(गाते हुए ) आज साहब के साथ मेरो होली मचेगी, आज पाहन
के साथ मेरी होली मचेगी, खूष पिचकारी लागऊँगा।
घसीटे -खूब अवीर चलाऊँगा।
ग्वाला-खूब गुलाल उड़ाऊँगा।
धोबो-बोतल पर-योतक चढ़ाऊँगा
अरदलो--- खूप कषोर सुनाऊँगा ।
उजागर० आज साहब के साथ मेरी होली मचेगी।
नूरअली-अच्छा, सब लोग सँभल जाओ। साहब को मोटर आ रही है।
सेठजी, यह लीजिए, मैं दौड़कर शपिचकारो लाया, बस एड चौताल छेड़ दीजिए
और जैसे ही साहस कमरे में आवे, उन पर रिचकारो छोड़िए और (दूसरे से ) तुम्म
लोग भी उनके मुंह में गुजाल मलो । साहष मारे खुशो के फूल जायेंगे। वह लो,
मोटर हाते में आ गई । होशियार !
( २ )
मिस्टर क स अपनी बन्दुक हाथ में लिये मोटर से उतरे और लगे आदमियों को
बुलाने । पर वहाँ तोम्जोरी से चौताल हो रहा था, सुनता कौन है । चकराये, यह
मामला क्या है । क्या सब मेरे गले में पा रहे हैं ? क्रोध से भरे हुए बँगले में
दाखिल हुए तो डाइनिंगरूम ( भोजन करने के कमरे में ) से गाने की आवाज आ
रही थी । अम क्या था ? जाने से बाहर हो गये। चेहरा विकृत हो गया। हठर उतार
लिया और डाइनिगरूम की ओर चले। लेकिन अभी एक कदम दरवाजे के बाहर हो
था कि सेठ उजागासल ने पिचकारो छोड़ो। सारे कपड़े तर हो गये । आँखों में भी
रग धुन गया। अखि पछ हो रहे थे कि साईस, ग्वाला सम-के घप दौड़े और साहद
को पकड़कर उनके मुंह में रङ्ग मलने लगे। धोगो ने तेल और कालिख का पाउडर
लगा दिया। साहब के क्रोध की सीमा न रहो । हटर लेकर सयों को अन्धाधुन्ध पीटने
कगा। बेचारे सोचे हुए थे कि साइक खुश होकर इनाम देंगे। हटर पड़े तो नशा
हिरन हो गया। कोई इधर भागा, कोई उधर । सेठ उजागरमल ने यह रश देखा तो
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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/२२६
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