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डड.हो पर से ले जाना है, तो और खेतों के डाक से क्यों नहीं ले गये ? क्या मुझे
कोई चूहड़ चमार समझ लिया है ? या धन का घमण्ड हो गया है ? लौटाओ इनको
बुद्ध-महतो, आज निकल जाने हो। फिर कभी इधर से आऊँ तो जो
सजा चाहे देना।
झीगुर-कह दिया कि लौटाओ इन्हें ! अगर एक भेड़ भी मेंड़ पर आई, तो
समझ लो, तुम्हारी खैर नहीं है।
बुद्ध-महतो, अगर तुम्हारी एक बेल भी किसी भेग के पैरों तले आ जाय,
तो मुझे बैठाकर सो गालियां देना।
बुद्धू पाते तो बड़ी नम्रता से कर रहा था, किन्तु लौटने में अपनी हेठो
सममता था। उसने मन में सोचा, इसी तरह जरा-जरा-सी धमकियों पर भेड़ों को
लौटाने लगा, तो फिर मैं भेड़े चरा चुका। आज लौट जाऊँ, तो कल को कहीं
निकलने का रास्ता ही न मिलेगा। सभी रोष जमाने लगेंगे।
बुद्धू भो पोढ़ा आदमी था। १२ कोही भेड़ें थीं। उन्हें खेतों में बिठाने के
लिए फ्री रात ॥) कोसी मजदूरी मिलती थी, इसके उपरान्त दृध बेचता था;
के कम्बल बनाता था। सोचने लगा-इतने गरम हो रहे हैं, मेरा कर ही क्या
लंगे? कुछ इनका दल तो हूँ नहीं। भेड़ों ने जो हरी-हरी पत्तियां देखी, तो
अधीर हो गई। खेत में 'घुस पड़ी । बुधू उन्हें डों से मार-मारकर खेत के किनारे
से हटाता था, और वे इधर-उधर से निकलकर खेत में जा पाती थो। माँगुर ने
भाग होकर कहा- तुम मुझसे हेकड़ी जताने चले हो, तो तुम्हारी सारी हेकड़ी
निकाल दूंगा।
बुद्धू-तुम्हें देखकर चौकती है। तुम हट जाओ, तो मैं सबको निकाल
ले जाऊँ।
मींगुर ने लड़के को तो गोद से उतार दिया, और अपना डडा संभालकर भेड़ों
पर पिल पड़ा । धोषी भी इतनी निर्दयता से अपने गधे को न पीटता होगा। किसी
भंड की टांग टूटी, किसी की कमर टूटी। सबने 'बे-ब' का शोर मचाना शुरू किया।
बुद्धू चुपचाप खड़ा अपनी सेना का विध्वस अपनी आँखों से देखता रहा। वह न
भेषों को हाकता था, न झींगुर से कुछ कहता था, बस खड़ा तमाशा देखता रहा।
दो मिनट में झींगुर ने इस सेना को अपने अमानुषिक पराक्रम से मार भगाया।
ऊन
पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/२३१
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