मानसरोवर
?
यहां कारावास दे रखा था-मैं इसे विवाह का पवित्र नाम नहीं देना चाहतो-यह
कारावास ही है । मैं इतनी उदार नहीं हूँ कि जिसने मुझे कैद में डाल रखा हो उसकी
पूजा करूँ, जो मुझे लात से मारे उसके पैरों को चूसूं । मुझे तो मालूम हो रहा है,
इश्वर इन्हें इस पाप का दण्ड दे रहे हैं। मैं निस्सकोच होकर कहती हूं कि मेरा इनसे
विवाह नहीं हुआ। स्त्री किसी के गले बाँध दी जाने से ही उसकी विवाहिता नहीं
हो जाती। वही संयोग विवाह का पद पा सकता है जिसमें कम-से-कम एक बार
तो हृदय प्रेम से पुलकित हो जाय । सुनती हूँ, महाशय अपने कमरे में पड़े.पड़े
मुझे कोसा करते हैं, अपनो बीमारी का सारा बुखार मुझ पर निकालते हैं, लेकिन यहाँ
इसकी परवा नहीं । जिसबा जी चाहे जायदाद ले, धन ले, मुझे इसको ज़रूरत नहीं !
( ६ )
आज तीन महीने हुए, मैं विधवा हो गई, कम से-कम लोग यही कहते हैं
जिसका जो जी चाहे कहे, पर मैं अपने को जो कुछ समझती हूँ वह समझती हूँ।
मैंने चूड़ियां नहीं तोड़ी, क्यों तोडूं ? मांग में सेंदुर पहले भी न डालती थी, अब
भी नहीं डालतो । बूढ़े बाबा का क्रिया-कर्म उनके सुपुत्र ने किया, मैं पास न फटकी।
घर में मुम्भ पर मनमानी आलोचनाएँ होती हैं, कोई मेरे गूंथे हुए वालों को देखकर
नाक सिकोड़ता है, कोई मेरे आभूषणों पर अखें मटकाता है, यहाँ इसकी चिन्ता नहीं।
इन्हें चिढ़ाने को मैं भी रङ्ग-बिरङ्गो साड़ियाँ पहनती हूँ, और भी बनती-संवरती हूँ, मुझे
भी दुःख नहीं है । मैं तो कैद से छूट गई । इधर कई दिन सुशोला के घर गई ।
छोटा-सा मकान है, कोई सजावट न सामान, चारपाइयाँ तक नहीं, पर सुशीला कितने
आनन्द से रहती है। उसका उल्लास देखकर मेरे मन में भी भाँति-भांति की कल्पनाएँ
उठने लगती हैं-उन्हें कुत्सित क्यों कहूं , जब मेरा मन उन्हें कुत्सित नहीं समझता।
इनके जीवन में कितना उत्साह है, आँखें मुसकिराती रहती है, ओठों पर मधुर हास्य
खेलता रहता है, बातों में प्रेम का स्रोत बहता हुआ जान पड़ता है । इस मानन्द से,
चाहे वह कितना हो क्षणिक हो, जोवन सफल हो जाता है, फिर उसे कोई भूल नहीं
सकता, उसकी स्मृति अंत तक के लिए काफी हो जाती है, इस मिज़राब को चोट
हृदय के तारों को अत-काल तक मधुर स्वरों से कपित रख सकती है।
एक दिन मैंने सुशीला से कहा- अगर तेरे पतिदेव कहीं परदेश चले जाय तो
तू रोते-रोते मर जायगी ?
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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/२७
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