पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/२८४

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सत्याग्रह

() लोगों के जाने के बाद मोटेराम ने पुले सवालों से पूछा-तुम यहाँ क्यों खड़े हो? सिपाहियों ने कहा-साहब का हुक्म है, क्या करें ? मोटेराम- यहाँ से चले जाओ। सिपाही- आपके कहने से चले जाय ? हल नौकरी छूट जायगी, तो आप खाने को देंगे? मोटेराम-हम कहते हैं, चले जाओ, नहीं तो हम ही यहाँ से चले जायेंगे। हम कोई वैदो नहीं हैं, जो तुम घेरे खड़े हो ? सिपाही- चले क्या आइएगा, मजाल है । मोटेराम-मजाल क्यों नहीं है बे! कोई जुर्म किया है। सिपाही-- अच्छा, जाओ तो देखें ? पण्डितजी ब्रह्म-तेज में आकर उठे और एक सिपाही को इतनी जोर से धक्षा दिया कि वह कई दम पर जा गिरा। दूसरे सिपाहियों की हिम्मत छूट गई। पण्डितजी को उन सबने थलथल समम् लिया था, पराक्रम देखा, तो चुपके से सटक गये। मोटेराम अब लगे इधर-उधर नजरें दौड़ाने कि कोई खोचेवाला नजर आ जाय, तो उससे कुछ ले। किन्तु तुरन्त ध्यान आ गया, कहीं उसने छिसो से छह दिया, तो? लोग तालियां बजाने लगेंगे। नहीं, ऐसी चतुराई से काम करना चाहिए कि. पिसी को कानोकान खबर न हो। ऐसे ही संकटों में तो बुद्धि बल का परिचय मिलता। है। एक क्षण में उन्होंने इस कटिन प्रश्न को हल कर लिया। दैवयोग से उसो समय एक खोंचेवाला जाता दिखाई दिया। ११ बज चुके थे,. चारों तरफ सन्नाटा छा गया था। पण्डितजी ने बुलाया- खाँचेवाले, ओ खोचेवाले। सोचेवाला- कहिए, क्या हूँ ? भून लग आई न ? भन्न-पान छोड़ना साधुओं का काम है, हमारा-आपका नहीं। मोटेराम-भवे क्या पता है ? यहाँ क्या किसी साधु से कम हैं ? चाहें, तो महीनो पड़े रहें, और भूख-प्यास न लगे। 'न तो केवल इसलिए बुलाया कि