मानसरोवर
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ऐसे मस्त थे कि उसकी कुछ परवा ही न करते थे। इधी योच में आपने लुसी को
• आते देख लिया, और भी फूल ये। बार-बार पैर चलाते थे, मगर निशाना खालो
जाता था; पैर पड़ते भी थे तो गेंद पर कुछ असर न होता था। और लोग आकर
योद को एक ठोकर में आसमान तक पहुंचा देते, तो आप कहते, मैं जोर से माऊँ,
तो इससे भी ऊपर जाय, लेकिन फायदा क्या । लूसी दो-तीन मिनट तक खड़ी उनको
बौखलाहट पर हसती रही। आखिर नईम से बोली- वेल नईम, इस पण्डित को
क्या हो गया है ? रोज एक न-एक स्वांग मरा करता है। इसके दिमाग में खलल
तो नहों पड़ गया ?
नईल-मालूम तो कुछ ऐसा ही होता है ।
शाम को सब लोग छात्रालय में भाये, तो मित्रों ने जाकर पण्डितजी को बधाई
“दी। यार, हो बड़े खुशनसीब, हम लोग फुटबाल को कालेज को चोटी तक पहुँचाते
रहे, मगर किसी ने तारीफ़ न को। तुम्हारे खेल की सयने तारीफ़ को, खासकर लूसी
'ने । वह तो कहती थी, जिस ढग से यह खेलने हैं, उस ढग से मैंने बहुत कम हिंदु-
-स्तानियों को खेलते देखा है.। मालूम होता है, आक्सफोर्ड का कोई अभ्यस्त
खिलाड़ी है।
चक्रधर-और भी कुछ बोलो क्या कहा, सच बताओ ?
नडेम-अनी, अब साफ़-साफ़ न कहलवाइए । मालूम होता है, आपने टट्टी को
भाप से शिकार खेला है। पड़े उस्ताद हो यार। हम लोग मुंह ताकते रहे, और
'तुम मैदान मार ले गये। अभी आप रोज यह कलेवर बदला करते थे। भा यइभेद
खुला। वाकई खुशनसीब हो।
चक्रधर-मैं उसो कायदे से गेंद में ठोकर मारता था, जैसे किताब में लिखा है।
नईम-तभी तो पालो मार ले गये भाई। और नहीं क्या हम आपसे किसी
'पात में कम है। हाँ, तुम्हारी-जैसी सूरत कहाँ से लार्वे ।
चक्रधर~बहुत बनायो नहीं। मैं ऐसा कहाँ का बड़ा रूपवान हूँ।
नईम-अनो, यह तो नतीजे ही से ज़ाहिर है। यहां साबुन और तेल लगाते-
लगाते भौर हुआ जाता है, और कुछ असर नहीं होता। मगर आपका रग बिना हरे,
'फिटकिरी के हो चोखा है।
चक्रधर-कुछ मेरे कपड़े वगैरह को निस्बत तो नहीं कहती थी ?
पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/३१७
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