स्त्री और पुरुष उसे देखने न जाता, सेवा करना तो दूर रहा। इतना ही नहीं, वह दिल में मनाता था कि यह मर जातो तो गला छूटता, अबको खुब देख-भालकर अपनी पसन्द का विवाह करता। अब वह और भी खुल खेला। पहले आशा से कुछ दबता था, कम से कम उसे यह धड़ा लगा रहता था कि कोई मेरो चाल ढाल पर निगाह रखनेवाला भी है । अब वह धड़का छूट गया । कुवासनाओं में ऐसा लिप्त हो गया कि मादाने कमरे में हो अमघटे होने लगे। लेकिन विषय-भोग में धन ही छा सवनाश नहीं होता, इनसे कहीं अधिक बुद्धि और बल का सर्वनाश होता है। विपिन का चेहरा पोला पड़ने लगा, देह भी क्षोण होने लगी, पसलियों की हड्डियां निकक आई, आँखों के इर्द-गिर्द गढ़े पड़ गये। अब वह पहले से कहीं ज्यादा शोक करता, नित्य तेल लगाता, बाल वन- वाता, कपड़े बदलता, किन्तु मुख पर कांति न थो, रग-रोगन से क्या हो सकता था। एक दिन आशा वरामदे में चारपाई पर लेटी हुई थी। इधर हफ्तों से उसने विपिन को न देखा था। उन्हें देखने को इच्छा हुई। उसे भय था कि वह न आयेंगे, फिर भी वह मन को न रोक सको। विपिन को बुला भेजा। विपिन को भी उन पर कुछ दया आ गई । आकर सामने खड़े हो गये। आशा ने उनके मुँह की ओर देखा तो चौंक पड़ी। वह इतने दुल हो गये थे कि पहचानना मुश्किल था । बोलो क्या तुम भी बीमार हो क्या ? तुम तो मुझसे भी ज्यादा घुल गये हो । निपिन-उँह, जिन्दगी में रखा ही क्या है जिसके लिए जीने को फिक्र करू। आशा-जीने की फिक न करने से कोई इतना दुबला नहीं हो जाता। तुम अपनी कोई दवा क्यों नहीं करते ? यह कहकर उसने विपिन का दाहना हाथ पकड़कर मानो चारपाई पर बैठा लिया। विपिन ने भी हाथ छुड़ाने की चेष्टा न की। उनके स्वभाव में इघ समय एक विचित्र नम्रता थी जो आशा ने कभी न देखो थी। बातों से भी निराशा टपकतो थी। अक्खड़पन या क्रोध को गन्ध भी न थो । माशा को ऐसा मालूम हुआ कि उनकी भाखों में आंसू भरे हुए हैं। विपिन चारपाई पर बैठते हुए बोले-मेरो दवा अब मौत करेगी। मैं तुम्हें पलाने के लिए नहीं कहता । ईश्वर जानता है, मैं तुम्हें चोट नहीं पहुंचाना चाहता । मैं अब ज्यादा दिनों तक न जिऊँगा। मुझे किस्रो भयंकर रोग के लक्षण दिखाई दे
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