उद्धार
हो जाय, पर करें क्या । यो उन्होंने फलदान तो रख लिया है, पर मुझसे कह दिया
है कि लड़का स्वभाव का हठीला है, अगर न मानेगा तो फलदान आपको लौटा
दिया जायगा।
स्त्री ने कहा- तुमने लड़के को एकान्त में बुलाकर पूछा नहीं ?
गुलजारीलाल- बुलाया था। बैठा रोता रहा, फिर उठकर चला गया। तुमसे
क्या कहें, उसके पैरों पर गिर पड़ा । लेकिन बिना कुछ कहे उठकर चला गया।
स्त्री-देखो, इस लड़की के पीछे क्या-क्या झेलना पश्ता है।
गुलजारीलाल-कुछ नहीं, आजकल के लौंडे सेलानी होते हैं । अंगरेजो पुस्तकों
में पढ़ते है कि विलायत में कितने ही लोग अविवाहित रहना हो पसन्द करते हैं।
बस यही सनक सवार हो जाती है कि निर्द्वन्द्व रहने में हो जीवन का सुख और
शान्ति है । जितनी मुसीवते हैं वह सब विवाह ही में है। मैं भी कालेन में था तब
सोचा करता था कि अकेला रहूंगा और मजे से सैर-सपाटा करूंगा।
स्त्री-है तो वास्तव में बात यहो। विवाह हो तो सारी मुसोवतों को जड़ है।
तुमने विवाह न किया होता तो क्या ये चिन्ताएं होती? मैं भी क्वारो रहती तो
चैन करती।
( २ )
इसके एक महीना बाद मुन्शी गुलजारीलाल के पास वर ने यह पत्र लिखा-
'पूज्यवर',
सादर प्रणाम।
आज बहुत असमंजस में पड़कर यह पत्र लिखने का साहस कर रहा हूँ। इस
धृष्टता को क्षमा कीजिएगा।
आपके जाने के बाद से मेरे पिताजी और माताजी दोनों मुझ पर विवाह करने
के लिए नाना प्रकार से दबाव डाल रहे हैं। माताजी रोती हैं, पिताजी नाराज होते
हैं। वह समझते हैं कि मैं केवल अपनी जिद के कारण विवाह से भागता हूँ।
कदाचित् उन्हें यह भी सन्देह हो रहा है कि मेरा चरित्र भ्रष्ट हो गया है। मैं
नास्तविक कारण बताते हुए डरता हूँ कि इन लोगों को दुःख होगा और आश्चर्य नहीं
कि शोक में उनके प्राणों पर ही बन जाय । इसलिए अब तक मैंने जो बात गुप्त
रखी थी वह आज विवश होकर आपसे प्रघट करता है और आपसे साग्रह निवेदन
पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/४०
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