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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/४४

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उद्धार . करे कि हम वह बुरा दिन देखने के लिए जीते रहें, पर विदाह हो जाने से तुम्हारी कोई निशानी तो रह जायगी। ईश्वर ने कोई सतान दे दो तो वही हमारे बुढ़ापे को लाठी होगी, उसी का मुंह देख-देखकर दिल को समझायेंगे, जीवन का छ आधार तो रहेगा। फिर आगे क्या होगा, यह कौन कह सकता है। डाक्टर किसी को कर्म- रेखा तो नहीं पढ़े होते, ईश्वर की लीला अपरम्पार है, डाक्टर उसे नहीं समझ सकते। तुम निश्चित होकर बैठो, हम जो कुछ करते हैं, करने दो, भगवान् चाहेंगे तो सब कल्याण हो होगा। हजारीलाल ने इसका कोई उत्तर न दिया। आँखें डबडबा माई, कंठावरोध के कारण मुँह तक न खोल सका । चुपके से आकर अपने कमरे में लेट रहा । तीन दिन और गुज़र गये, पर हमारीलाल कुछ निश्चय न कर सका। विवाह की तैयारियां पूरी हो गई थी । आँगन में मडप गड़ गया था, डाल, गहने सदकों में रखे जा चुके थे। मैनेयो को पूजा हो चुकी थी और द्वार पर बाजों का शोर मचा हुआ था। महल्ले के लड़के जमा होकर वाजा सुनते थे और उल्लास से इवर-उधर दौड़ते थे। सध्या हो गई थी। बरात आज रात की गाड़ी से जानेवाली थी। बरातियों ने अपने वस्राभूषण पहनने शुरू किये। कोई नाई से बाल बनवाता था और चाहता था कि खत ऐसा साफ हो जाय मानौं वही बाल कभी थे ही नहीं, बूढ़े अपने पके बाल उखड़वाकर जवान बनने की चेष्टा कर रहे थे । तेल, सावुन उवटन की लूट मची हुई थी और हजारीलाल बगीचे में एक वृक्ष के नीचे उदास बैठा हुआ सोच रहा था, क्या करूं? अन्तिम निश्चय की घड़ी सिर पर खड़ी थी। अब एक क्षण भी विलम्म करने का मौका न था। अपनी वेदना किससे कहे, कोई सुननेवाला न था। उसने सोचा, हमारे माता-पिता कितने अदूरदर्शी हैं, अपनी उमग में इन्हें इतना भी नहीं सूमता कि वधू पर क्या गुजरेगी। वधू के माता-पिता भी इतने अन्धे हो रहे हैं कि देखकर भी नहीं देखते, जानकर भी नहीं जानते । क्या यह विवाह है ? कदापि नहीं । यह तो लड़की को कुएं में डालना है, भाड़ में झोंकना है, कुन्द छुरे से रेतना है । कोई यातना इतनी दुस्सह, इतनी हृदयविदारक नहीं हो सकती जितनी वैधव्य । और ये लोग जान-बूमकर अपनी पुत्री को वैधव्य