यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
५२ मानसरोवर परशुराम-जानता भी हूँ और नहीं भी जानता। मर्यादा- मुझे वासुदेव को ले जाने दोगे ? परशुराम-वासुदेव मेरा पुत्र है। मर्यादा-से एक बार प्यार कर लेने दोगे ! परशुराम-अपनी इच्छा से नहीं, हां, तुम्हारी इच्छा हो तो घर से देख सकतो हो। मर्यादा-तो भाने दो, न देखेंगी। समझ लूगी कि मैं विधवा भी है और बांक भी । चलो मन । मन इस घर में तुम्हारा निबाह नहीं है। चलो, जहाँ भाग्य ले वामन