DIRI
पण्डित-सब कुएं में गिर पड़े तो तुम भी कुएं में गिर पड़ोगो ? सोचो तो,
इस वक इस हार के बनाने में ६००) लगेंगे। अगर १) प्रति सैकड़ा भो ब्याज रख
लिया जाय तो ५ वर्ष में ६००) के लगभग १०००) हो जायेंगे। लेकिन ५ वर्ष
में तुम्हारा हार मुश्किल से ३००) का रह जायगा । इतना बड़ा नुकसान उठाकर हार
पहनने में क्या सुख ? यह हार वापस कर दो, भोजन करो, और आराम से पढ़ो रहो ।
यह कहते हुए पण्डितजी बाहर चले गये।
रात को एकाएक माया ने शोर मचाकर कहा-चोर । चोर ! हाय ! घर में
चोर ! मुझे घसीटे लिये जाते हैं।
पण्डितजी हकाकाकर उठे और बोले-कहाँ, कहाँ ? दोहो, दौड़ो ।
माया-मेरो कोठरी में गया है। मैंने उसकी परछाई देखो।
पण्डित-लालटेन लाओ, जरा मेरी लकड़ो उठा लेना।
माया-मुमसे तो मारे डर के उठा नहीं जाता।
कई आदमो बाहर से बोले -कहाँ हैं पण्डितजी, कोई सेंद पड़ी है क्या ?
माया-नहीं-नहीं, खपरैल पर से उतरे हैं । मेरो नौद खुली तो कोई मेरे कार
झुका हुआ था। हाय राम ! यह तो हार हो ले गया! पहने-पहने सो गई थी । मुये
ने गले से निकाल लिया। हाय भगवान् ।
पण्डित-तुमने हार उतार क्यों न दिया था ?
माया-मैं क्या जानती थी कि आज हो यह मुपोबत सिर पड़नेवालो है, हाय
भगवान् ।
पण्डित -अब हाय हाय करने से क्या होगा ? अपने कर्मों को रोओ। इसी लिए
कहा करता था कि सब पड़ो वराबर नहीं जातो, न जाने कब क्मा हो आय । अब
आई समझ में मेरी बात ! देखो और कुछ तो नहीं ले गया ?
पड़ोसी लालटेन लिये भा पहुँचे। घर में कोना-कोना देखा।
करियाँ देखो, छत पर चढ़कर देखा, अगड़े-पिछवाड़े देखा, शौच-गृह में मौका,
कहीं चोर का पता न था।
एक पड़ोसी-किसी जानकार आदमी का काम है।
दूसरा पड़ोसी-बिना घर के भेदिये के कभी चोरो होती ही नहीं। और कुछ
तो नहीं ले गया ?
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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/६८
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