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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/७

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मानसरोवर

बम्बई की व्यवस्थापक-सभा ने भनाज पर कर लगा दिया था और जनता को और से उसका विरोध करने के लिए एक विराट् सभा हो रही थी। सभी नगरों से प्रजा के प्रतिनिधि उसमें सम्मिलित होने के लिए हजारों की संख्या में आये थे। मिस जोशी के विशाल भवन के सामने चौड़े मैदान में हरी-हरी घास पर बम्बई को जनता अपनी फरियाद सुनाने के लिए जमा थी। अभी तक सभापति न भाये थे, इस- लिए लोग मैठे गपशप कर रहे थे। कोई कर्मचारियों पर आक्षेप करता था, कोई देश को स्थिति पर, कोई अपनी दीनता पर-अगर हम लोगों में अकड़ने का जरा भी सामर्थ्य होता तो मजाल थी कि यह कर लगा दिया जाता, अधिकारियों का घर से बाहर निक- रना मुश्किल हो जाता। हमारा ज़रूरत से ज्यादा सीधापन हमें अधिकारियों के हाथों का खिलौना बनाये हुए है। वे जानते हैं कि इन्हें जितना दमाते जाओ, उतना दबते जारेंगे, सिर नहीं उठा सकते। सरकार ने भी उपद्रव को आशका से सशस्त्र पुलीस बुला ली थी। उस मैदान के चारों कोनों पर सिपाहियों के दल डेरे डाले पड़े थे। उनके अफसर, घोड़ों पर सवार, हाथ में हटर लिये, जनता के बीच में निशंक भाव में घोड़े दौड़ाते फिरते थे, मानों साफ मैदान है । मिस जोशी के ऊँचे बरामदे में नगर के सभी बड़े-बड़े रईस और राज्याधिकारी तमाशा देखने के लिए बैठे थे। मिस जोशी मेहमानों का भादर-सत्कार कर रही थी और मिस्टर जौहरी आराम-रसी पर लेटे, इस जन-समूह को घृणा और भय की दृष्टि से देख रहे थे।

सहसा सभापति महाशय आपटे एक किराये के तांगे पर भाते दिखाई दिये। चारों तरफ हलचल मच गई, लोग उठ उठकर उनका स्वागत करने दौड़े और उन्हें लाकर मच पर बैठा दिया । आपटे की अवस्था ३०-३५ वर्ष से अधिक न थी, दुबले- पतले आदमी थे, मुख पर चिन्ता का गाढा रङ्ग चढ़ा हुआ ; बाल भी पक चले थे, पर मुख पर सरल हास्य को रेखा मलक रही थी। वह एक सुफेद मोटा फरता पहने हुए थे, न पाव में जूते थे, न सिर पर टोपी । इस भर्द्धनग्न, दुर्बल, निस्तेज प्राणो में न जाने कौन-सा जादू था कि समस्त जनता उसकी पूजा करती थी, उसके पैरों पर सिर रगरती थी। इस एक प्राणी के हार्थों में इतनी शक्ति थी कि वह क्षणमात्र में सारी मिलों को बन्द करा सकता था, शहर का सारा कारोबार मिटा सकता था। अधिकारियों को उसके य से नीद न आती थी, रात को सोते सोते चौंक परते थे। ज्यादा भयकर कन्तु अधिकारियों की दृष्टि में दूसरा न था। यह प्रचंड शासन-