शक्ति उस एक हड्डो के आदमो से थर-थर कापतो थी, क्योंकि उस इड्डो में एक पवित्र निष्कलक, बलवान और दिव्य आत्मा का निवास था।
आपटे ने मच पर खड़े होकर पहले जनता को शान्त-चित्त रहने और अहिंसा- व्रत पालन करने का आदेश दिया। फिर देश को राजनीतिक स्थिति का वर्णन करने लगे। सहसा उनको दृष्टि सामने मिस जोशो के बरामदे को ओर गई तो उनका प्रजा-दु.ख-पीड़ित हृदय तिलमिला उठा । यहाँ अगणित प्राणो अपनो विपत्ति को रि- याद सुनाने के लिए जमा थे और वहाँ मेओं पर चाय और बिस्कुट, मेवे और फल, बर्फ और शराब को रेल-पेल थी। वे लोग इन अभागों को देख-देख हँसते और तालियां बजाते थे। जीवन मे पहली बार आपटे की जबान काबू से बाहर हो गई। मेघ की भांति गरजकर बोले-
इधर तो हमारे भाई दाने-दाने को मुहताज हो रहे हैं, उधर अनाज पर पर लगाया जा रहा है, केवल इसलिए कि राजकर्मचारियों के इलुवे-पुरो में कमो न हो। हम जो देश के राजा हैं, जो छातो फाड़कर धरती से धन निकालते हैं, भूखों मरते हैं , और वे लोग, जिन्हें हमने अपने सुख और शांति को व्यवस्था करने के लिए रखा है, हमारे स्वामी बने हुए शरामों को बोतले उदाते हैं। कितनो अनोखो बात है कि स्वामी भूखों मरे और सेवक शराबें उड़ाये, मेवे खाये और इटलो और स्पेन को मिठाइयाँ चखे । यह किसका अपराध है? क्या सेवकों का ? नहीं, कदापि नहीं, यह हमारा ही अपराध है कि हमने अपने सेवकों को इतना अधिकार दे रखा है। आज हम उच्च स्वर से कह देना चाहते हैं कि हम यह क्रूर और कुटिल व्यवहार नहीं सह सकते ! यह हमारे लिए असह्य है कि हम और हमारे बाल बच्चे दानों को तरस और कर्मचारो लोग विलास में डूबे हुए, हमारे करुण ऋदन को जरा भो परवा न करते हुए विहार करें । यह असह्य है कि हमारे घरों में चूल्हे न जलें और कर्मचारी लोग थिएटरों में ऐश करें, नाच-रज को महफ़िल सजाय, दावते उड़ायें, वेश्याओं पर कंचन की वर्षा करें । ससार में ऐसा और कौन देश होगा, जहां प्रजा तो भूखों मरती हो और प्रधान कर्मचारी अपनी प्रेम-कड़ाओं में मग्न हो, जहाँ स्त्रियां गलियों में ठोकरें खाती फिरतो हो और अध्यापिकाओं का वेष धारण करनेवाली वेश्याएँ आमोद- प्रमोद के नशे में चूर हो..