पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/९४

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एक आंच को कसर दूसरा-ऐसे-ऐसे धनी, मानी, विद्वान् लोग ऐसे पतित हो सकते है, मुझे तो यही आश्चर्य है । लेना है तो खुले खजाने लो, कौन तुम्हारा हाथ पड़ता है। यह क्या कि माल भी चुपके-चुपके उनाओ और यश भी कमाओ ? तीसरा-मकार का मुंह काला ! चौथा- यशोदानन्द पर दया मा रही है। बेचारे ने इतनी धूर्तता को, उस पर भी कलई खुल हो गई। बस, एक आंच को कसर रह गई।