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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 3.djvu/९३

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. एक महाशय--पढ़ने दोजिए, इस तहरीर में जो लुत्फ है वह किसी दूसरी तकरीर में न होगा। दूसरे- -जादृ वह जो सिर पर चढ़के बोले । तीसरे-~-गब जलसा बरखास्त कीजिए । मैं तो चला। चौथे-यहाँ भी चलन्त हुए । यशोदानन्द-वैठिए-पैठिए, पत्तल लगाये जा रहे हैं। पहले-बेटा परमानन्द, ज़रा यहाँ तो आना, तुमने यह कागज़ कहाँ पाया ? परमानन्द- बाबूजी हो ने तो लिखकर अपने मेज़ के अन्दर रख दिया था। धुझसे कहा था कि इसे पढ़ना । अव नाहक मुझसे खफा हो रहे हैं। यशोदानन्द-वह यह कागका था सुअर ? मैंने तो मेज़ के ऊपर ही रख दिया था, तूने ड्रायर में से क्यों यह काग्रज निकाला ? परमानन्द-मुझे मेज़ पर नहीं मिला। यशोदानन्द-तो मुझसे क्यों नहीं कहा, डाभर क्यों खोला ? देखो, भाज ऐसी खबर लेता हूँ कि तुम भी याद करोगे। पहले-यह आकाशवाणी है। दुसरे-इसी को लोडरी कहते हैं कि अपना उल्लू भी सीधा करो और नेकनाम सो बनो। तोसरे- शरम आनी चाहिए। यश त्याग से मिलता है, धोखे-धड़ी से नहीं। चौथे---मिल तो गया था, पर एक आँच की कसर रह गई। पाँच-ईश्वर पाखण्डियों को याही दण्ड देता है। यह कहते हुए लोग उठ खड़े हुए। यशोदानन्द समझ गये कि भाँदा फूट गया, अब रंग न जमेगा, बार-बार परमानन्द को कुपित नेत्रों से देखते थे और एण्डा तौल. कर रह जाते थे। इस शैतान ने आज जीती-जिताई बाजी खो दो, मुंह में कालिख लग गई, सिर नीचा हो गया। गोली मार देने का काम किया है। उधर रास्ते में मित्रवर्ग यो टिप्पणियां करते जा रहे थे- एक-ईश्वर ने मुँह में कैसो कालिमा लगाई कि हयादार होगा तो अब सूरत न दिखायेगा।