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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/१०८

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खुचड़ १०९ महरी-मैं तो आप ही पछता रही हूँ सरकार । रामेश्वरी~जा गोबर से चौका लीप दे, मटकी के टुकड़े दूर फेक दे । और बाजार से घी लेती श्रा। महरी ने खुश होकर चौका गोबर से लीपा, और मटकी के टुकड़े बटोर रही थी कि कु दनलाल श्रा गये, और हाँडी टूटी देखकर बोले-यह हाँडी कैसे टूट गई। रामेश्वरी ने कहा~महरी उठाकर ऊपर रख रही थी, उसके हाथ से छूट पड़ी। 3 कुदनलाल ने चिल्लाकर कहा--तो सब घी बह गया ? 'और क्या कुछ बच भी रहा ! 'तुमने महरी से कुछ कहा नहीं ! 'क्या कहती | उसने जान बूझकर तो गिरा नहीं दिया !' 'यह नुकसान कौन उठायेगा। 'हम उठायेगे, और कौन उठायेगा। अगर मेरे ही हाथ से छूट पड़ती, 'तो क्या हाथ काट लेती।। कुन्दनलाल ने अोठ चबाकर कहा-तुम्हारी कोई बात मेरी समझ में नहीं पाती। जिसने नुकसान किया है, उससे वसूल होना चाहिए । यही ईश्वरीय नियम है । आँख की जगह आँख, प्राण के बदले प्राण, यह ईसा- मसीह-जैसे दयालु पुरुष का कथन है। अगर दड का विधान ससार से उठ जाय, तो यहाँ रहे कौन ? सारी पृथ्वी रक्त से लाल हो जाय, हत्यारे दिन- दहाडे लोगो का गला काटने लगे । दड ही से समाज की मर्यादा कायम है। जिस दिन दड न रहेगा, स सार न रहेगा। मनु आदि स्मृतिकार वेबकूफ नहीं ये कि दड-न्याय को इतना महत्त्व दे गये। और किसी विचार से नहीं तो मर्यादा की रक्षा के लिए दड अवश्य देना चाहिए। ये रुपये महरो को देने पड़ेगे । उसकी मजदूरी काटनी पडेगी। नहीं तो आज उसने घी का घड़ा जुटका दिया है, कल को कोई और नुकसान कर देगी। रामेश्वरी ने डरते डरते कहा -मैंने तो उसे क्षमा कर दिया है। कु दनलाल ने अखेि निकालकर कहा- लेकिन मै नहीं क्षमा कर सकता।