आगा-पीछा ११७ मस्तक से लगा लेती-किंतु अनादर से दिये हुए अमृत की भी उसकी नज़रों में कोई हक़ीकत न थी। एक दिन कोकिला ने आँखों में आंसू भरकर श्रद्धा से कहा-क्यों मन्नी, सच बताना, तुझे यह लज्ला तो लगती हो होगी कि मैं क्यों इसकी बेटी हुई। यदि तू किसी ऊँचे कुल में पैदा हुई होतो, तो क्या तब भी तेरे दिल में ऐसे विचार आते १ तू मन-ही-मन मुझे ज़रूर कोसती होगी। श्रद्वा मा का मुंह देखने लगी। माता से इतनी श्रद्धा कभी उसके दिल मे पैदा नही हुई थी । कांपते हुए स्वर मे बोली-अम्माजी, आप मुझसे ऐसा प्रश्न क्यों करती हैं ? क्या मैने कभी आप का अपमान किया है १ कोकिला ने गद्गद होकर कहा- नहीं वेटी, उस परम दयालु भगवान से यही प्रार्थना है कि तुम्हारी-जैसी सुशील लड़की सबको दे। पर कभी-कभी यह विचार आता है कि तू अवश्य ही मेरी बेटी होकर पछताती होगी। श्रद्वा ने धीर कंठ से कहा--अम्मा, आपकी यह भावना निर्मूल है। मैं श्राप से सच कहती हूँ, मुझे जितनी श्रद्धा और भक्ति आपके प्रति है, उतनी किसी के प्रति नहीं । श्रार की बेटी कहलाना मेरे लिए लज्जा की बात नहीं, गौरव की बात है। मनुष्य परिस्थितियो का दास होता है । आप जिस वायुमडल मे पली, उसका असर तो पड़ना ही था किंतु पाप के दलदल मे फंसकर फिर निकल आना अवश्य गौरव की बात है । बहाव की अोर से नाव खे ले जाना तो बहुत सरल है , किंतु जो नाविक बहाव के प्रतिकून खे ले जाता है, वही सच्चा नाविक है। कोकिला ने मुस्कराते हुए पूछा-तो फिर विवाह के नाम से क्यो चिढती है १ श्रद्धा ने आँखे नीची करके उत्तर दिया- बिना विवाह के क्या जीवन व्यतीत नही हो सकता ? मैं कुमारी ही रहकर जीवन बिताना चाहती हूँ। विद्यालय से निकलकर कॉलेज मे प्रवेश करूँगी, और दो-तीन वर्ष बाद हम दोनों स्वमत्र रूप से रह सकती हैं। डॉक्टर बन सकती हूँ, वकालत कर सकती हूँ, औरतों के लिए अब सब मार्ग खुल गये हैं। कोकिला ने डरते-डरते पूछा-क्यों, क्या तुम्हारे हृदय मे कोई दूसरी इच्छा नहीं होती? किसी से प्रेम करने की अभिलाषा तेरे मन मे नहीं पैदा होती? >
पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/११६
दिखावट