पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/१४४

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प्रेम का उदय ही के लिए तो आदमी सब तरह के कुकरम करता है। धूनी सुलगाकर भी देख लो। दारोगाजी को अब विश्वास पाया कि इस फौलाद को झुकाना मुश्किल है । भोंदू की मुखाकृति से शहीदों का-सा आत्म-समर्पण झलक रश था। यद्यपि उनके हुक्म की तामील होने लगी, दो कासटेबलों ने भोंदू को एक कोठरी मे बद कर दिया, दो आदमी मिचे लाने दौड़े ; लेकिन दारोगा की युद्ध-नीति बदल गई थी। बटी का हृदय क्षोभ से फटा जाता था। वह जानती थी, चोरी करके एकबाल कर लेना कजड़ जाति की नीति में महान् लज्जा की बात है ; लेकिन क्या यह सचमुच मिर्च की धूनी सुनगा देगे १ इतना कठोर है इनका हृदय ? सालन बघारने मे कभी मिर्च जल जाती है, तो छौंकों और खासियों के मारे दम निकलने लगता है। जब नाक के पास धूनी सुलगाई जायगी तब तो प्राण ही निकल जायेंगे। उसने जान पर खेलकर कहा- दारोगाजी तुम समझते होगे कि इन गरीबो की पीठ पर कोई नहीं है, लेकिन मैं कहे देती हूँ, हाकिम से रत्ती-रत्ती हाल कह दूंगी । भला चाहते हो, तो उसे छोड दो, नहीं इसका फल बुरा होगा। थानेदार ने मुस्कराकर कहा-तुझे क्या, वह मर जायगा, किसी और के नीचे बैठ जाना । जो कुछ जमा जथा लाया होगा, वह तो तेरे ही हाथ में होगी। क्यो नहीं एकबाल करके उसे छुड़ा लेती। मैं वादा करता हूँ, मुक- दमा न चलाऊँगा । सब माल लौटा दे। तूने ही उसे मत्र दिया होगा। गुलाबी साडी और पान और खुराबूदार तेल के लिए तू ही ललच रही होगी। उसकी इतनी सांसत हो रही है और तू खड़ी देख रही है। शायद बटी की अतरात्मा को यह विश्वास न था कि यह लोग इतने अमानुपीय अत्याचार कर सकते हैं , लेकिन जब सचमुच धूनी सुलगा दी गई, मिर्च की तीखी जहरीली झार फैली और भोंदू के खांसने की आवाजें कानो मे आई , तो उसकी आत्मा कातर हो उठी। उसका वह दुराहस झूठे रंग की भांति उड़ गया । उसने दारोगाजी के पांव पकड़ लिये और दीन भाव से बोली- मालिक, मुझ पर दया करो। मैं सब कुछ दे दूंगी। धनी उसी वक्त हटा ली गई ।