पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/१८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भूत १८३ सध्या हो गई थी। मंगला चारपाई पर पड़ी हुई थी। बेटे, बहुएँ, पोते, पोतियां सब चारपाई के चारों ओर खड़े थे । बिन्नी पैंताने बैठी मगला के पैर दबा रही थी। मृत्यु के समय की भयकर निस्तब्धता छाई हुई थी। कोई किसी से न बोलता था, दिल मे सब समझ रहे थे, क्या होनेवाला है। केवल चौवेजो वहाँ न थे। सहसा मगला ने इधर-उधर इच्छा-पूर्ण दृष्टि से देखकर कहा- ज़रा उन्हें बुला दो; कहां हैं ? तजी अपने कमरे में बैठे रो रहे थे। सदेश पाते ही आँसू पोंछते हुए घर मे आये, और बडे धैर्य के साथ मंगला के सामने खड़े हो गये । डर रहे थे कि मेरी आँखों से आंसू की एक बूद भी निकली, तो घर में हाहाकार सच जायगा। मगला ने कहा-एक बात पूछती हूँ-बुरा न मानना-बिन्नी तुम्हारी कौन है ? पडित-बिन्नी कौन है ? मेरी बेटी है, और कौन ? मगला--हाँ, मैं तुम्हारे मुंह से यही सुनना चाहती थी। उसे सदा अपनी वेरी समझते रहना । उसके विवाह के लिए मैंने जो-जो तैयारियां की थीं, उनमे कुछ काट-छाँट मत करना। पडित-इसको कुछ चिंता न करो। ईश्वर ने चाहा, तो उससे कुछ ज़्यादा धूम-धाम के साथ विवाह होगा। मगला-उसे हमेशा बुलाते रहना, तीज-त्योहार में कभी मत भूलना। पडित-इन बातों की मुझे याद दिलाने की जरूरत नहीं। मगला ने कुछ सोचकर फिर कहा-इसी साल विवाह कर देना। पंडित-इस साल कैसे होगा? यह फागुन का महीना है । जेठ तक लगन है। पडित-हो सकेगा तो इसी साल कर दूंगा। मगला-हो सकने की बात नहीं, जरूर कर देना। -कर दूंगा। इसके बाद गोदान की नैयारी होने लगी। मगला- पडत.