पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/२००

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सवा सेर गेहूँ २०१ शकर ने विप्रजी के यहाँ २० वर्ष तक गुलामी करने के बाद इस दुस्सार ससार से प्रस्थान किया। १९०) अभी तक उसके सिर पर सवार थे। प डितजी ने उस गरीब को ईश्वर के दरबार में कष्ट देना उचित न समझा, इतने अन्यायी, इतने निर्दय न थे । उसके जवान बेटे की गरदन पकड़ी । आज तक वह विप्रजी के यहाँ काम करता है। उसका उद्धार कब होगा, होगा भी या नहीं, ईश्वर ही जाने । पाठक । इस वृत्तांत को कपोल-कल्पित न समझिए। यह सत्य घटना है। ऐसे शकरो और ऐसे विप्रों से दुनिया खाली नहीं है । -