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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/२०२

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सभ्यता का रहस्य २०३ बहुधा चितित रहते हैं । रिशवत तो नहीं लेते--कम से कम मैं नहीं जानता, हालांकि कहनेवाले कहते हैं--लेकिन इतना जानता हूँ कि वह भत्ता बढाने के लिए दौरे पर बहुत रहते हैं, यहाँ तक कि इसके लिए हर साल बजट की किसी दूसरी मद से रुपये निकालने पड़ते हैं । उनके अफसर कहते हैं, इतने दौरे क्यो करते हो, तो जवाब देते हैं, इस जिले का काम ही ऐसा है कि जब तक खूब दौरे न किये जाय, रिपाया शात नहीं रह सकती। लेकिन मजा तो यह है कि राय साहब उतने दौरे वास्तव में नहीं करते, जितने कि अपने रोजनामचे में लिखते हैं। उनके पडाव शहर से ५० मील पर होते हैं । खेमे वहाँ गडे रहते हैं, कैप के अमले वहाँ पड़े रहते हैं, और राय साहब घर मित्रों के साथ गप-शप करते रहते हैं, पर किसी का मजाल है कि राय साहब की नेकनीयती पर संदेह कर सके । उनके सभ्य पुरुप होने में किसी को शका नही हो सकती। एक दिन मै उनसे मिलने गया । उस समय वह अपने घसियारे दमड़ी को डाँट रहे थे । दमडी रात-दिन का नौकर था, लेकिन घर रोटी खाने जाया करता था। उसका घर थोड़ी ही दूर पर एक गाँव में था। कल रात को किसी कारण से यहाँ न पा सका था। इसीलिए डांट पड रही थी राय साहब-जब हम तुम्हें रात-दिन के लिए रखे हुए हैं, तो तुम घर पर क्यो रहे १ कल के पैसे कट जायेंगे। दमडी-हजूर, एक मेहमान आ गये थे, इसी से न पा सका । राय साहब-तो कल के पैसे उसी मेहमान से लो। दमडी-सरकार, अब कभी ऐसी खता न होगी। राय साहब 1-बक बक मत करो। दमडी-हजूर .. राय साहब-दो रुपये जुरमाना। दमडी रोता हुआ चला गया । रोजा बख्शाने आया था, नमाज गले पड़ गई । २) जुरमाना ठुक गया। ख़ता यही थी कि बेचारा कसूर माफ कराना चाहता था। यह एक रात को गैरहाज़िर होने की सजा थी ! वेचारा दिन भर का