पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/२३७

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--- २३८ मानसरोवर दिन में आप ही मालूम हो जायगा। अपने यहां के समाचार लिखना । जवाब की आशा एक महीने के पहले तो है नहीं, यो तुम्हारी खुशी। 3 तुम्हारी चंदा (8) देहली १-१-२६ प्यारी बहन, तुम्हारे प्रथम मिलन की कुतूहलमय कथा पढ़कर चित्त प्रसन्न हो गया । मुझे तुम्हारे ऊपर हसद हो रहा है। मैंने समझा था, तुम्हें मुझपर हसद होगा, पर क्रिया उलटी हो गई। तुम्हें चारों ओर हरियाली ही नज़र आती है, मैं जिधर नज़र डालती हूँ, सूखे रेत और नग्न टीलों के सिवा और कुछ नहीं ! खैर ! अब कुछ मेरा वृत्तांत सुनो- "अब जिगर थामकर बैठो मेरी बारी आई ।। विनोद की अविचलित दार्शनिकता अब असह्य हो गई है। कुछ विचित्र' जीव हैं, घर में आग लगे, पत्थर पड़े, इनकी बला से। इन्हे मुझपर ज़रा भी दया नहीं आती। मैं सुबह से शाम तक घर के झझटो मे कुढ़ा करूँ, इन्हें कुछ परवा नहीं। ऐसा सहानुभूति से खाली श्रादमी कभी नहीं देखा था।' इन्हें तो किसी जगल मे तपस्या करनी चाहिए थी। अभी तो ख़र दो ही प्राणी हैं, लेकिन कहीं बाल-बच्चे हो गये तब तो मैं बे-मौत मर जाऊँगी। ईश्वर-न करे वह दारुण विपत्ति मेरे सिर पड़े। चंदा, मुझे अब दिल से लगी हुई है कि किसी भौति इनकी यह समाधि भग कर दूं। मगर कोई उपाय सफल नहीं होता, कोई चाल ठीक' नहीं पड़ती। एक दिन मैंने उनके कमरे के लंप का बल्ब तोड़ दिया। कमरा' अधेरा पड़ा रहा। आप सैर करके आये तो कमरा अँधेरा देखा। मुझसे पूछा, कह दिया, बल्ब टूट गया। बस आपने भोजन किया और मेरे कमरे में आकर लेट रहे । पत्रों और उपन्यासों की ओर देखा तक नहीं, न जाने वह उत्सुकता कहाँ विलीन हो गई । दिन भर गुज़र गया, आपको बल्ब' लगवाने की कोई फ़िक्र नहीं । अाखिर मुझी को बाज़ार से लाना पड़ा। , -