पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/२५५

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२५६ मानसरोवर अानंद ने रुंचे कंठ से कहा-तुम्हारी जैसी बहू पाकर भी अम्माजी का कलेजा नहीं पसीजता, अब क्या कोई स्वर्ग की देवी घर में आती। तुम डरो मत, मैं ख्वामख्वाह लड़ेगा नहीं, मगर हाँ, इतना अवश्य कह दूँगा कि जरा अपने मिज़ाज को काबू में रखें। श्राज अगर मैं २-४ सौ रुपये घर में लाता होता, तो कोई चू न करता । कुछ कमाकर नहीं लाता, यह उसी का दंड है। सच पूछो, तो मुझे विवाह करने का कोई अधिकार ही न था। मुझ जैसा मंदबुद्धि जो कौड़ी कमा नहीं सकता, उसे अपने साथ किसी महिला को डुबाने का क्या हक़ था। बहनजी को न जाने क्या सूझी है कि तुम्हारे पीछे पड़ी रहती हैं। ससुराल का सफाया कर दिया, अब यहाँ भी श्राग लगाने पर तुली हुई हैं । बस, पिताजी का लिहाज़ करता हूँ, नहीं इन्हें तो एक दिन मे ठीक कर देता। बहन, उस वक्त तो मैंने किसी तरह उन्हें शांत किया, पर नहीं कह सकती कि कब वह उबल पड़े। मेरे लिए वह सारी दुनिया से लड़ाई मोल ले लेगे । मैं जिन परिस्थितियो में हूँ, उनका तुम अनुमान कर सकती हो। मुझ पर कितनी ही मार पड़े, मुझे रोना न चाहिए, ज़बान तक न हिलाना चाहिए । मैं रोई और घर तबाह हुआ। आनंद फिर कुछ न सुनेगे, कुछ न देखेंगे । कदाचित् इस उपाय से वह अपने विचार में मेरे हृदय में अपने प्रेम का अंकुर जमाना चाहते हों। श्राज मुझे मालूम हुआ कि यह कितने क्रोधी हैं । अंगर मैंने ज़रा-सा पुचारा दे दिया होता, सो रात ही को वह सासजी की खोपड़ी पर जा पहुंचते । कितनी ही युवतियाँ इसी अधिकार के गर्व में अपने को भूल जाती हैं । मैं तो बहन, ईश्वर ने चाहा तो कभी न भूलूंगी। मुझे इस बात का डर नहीं है कि आनंद अलग घर बना लेगे, कैसे होगा। मैं उनके साथ सब कुछ झेल सकती हूँ। लेकिन घर तो तबाह हो जायगा। बस, प्यारी पना, आज इतना ही। पत्र का जवाब जल्द देना । तुम्हारी चंदा 3 तो गुजर