पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/२७९

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२८० मानसरोवर मैं घर चली, तो सोचने लगी-भुवन से इसकी जान-पहचान कैसे हुई ? कहीं ऐसा तो नहीं है कि विनोद ने इसे मेरी टोह लेने को भेजा हो । भुवन से मेरे विषय में कुछ पूछने तो नहीं आई है ? मैं घर पहुंचकर बैठी ही थी कि कुमुम श्रा पहुंची। अब की वह मोटर में अकेली न थी-विनोद बैठे हुए थे। मैं उन्हें देखकर ठक रह गई। चाहिए तो यह था कि मैं दौड़कर उनका हाथ पकड़ लेती और मोटर से उतार लाती, लेकिन मैं जगह से हिली तक नहीं। मूर्ति की भाँति अचल बैठी रही। मेरी मानिनी प्रकृति अपना उदंड स्वरूप दिखाने के लिए विकल हो उठी। एक क्षण मे कुसुम ने विनोद को उतारा और उनका हाथ पकड़े हुए ले पाई। उस वक्त मैने देखा कि विनोद का मुख बिलकुल पीला पड़ गया हैं और वह इतने अशक्त हो गये हैं कि अपने सहारे खड़े भी नहीं रह सकते, मैंने घबराकर पूछा, क्यो तुम्हारा यह क्या हाल है ? कुसुम ने कहा-हाल पीछे पूछना, ज़रा इनकी चारपाई चटपट बिछा दो और थोड़ा सा दूध मॅगवा लो। मैने तुरत चारपाई बिछाई और विनोद को उसपर लेटा दिया । दूध तो रखा ही हुआ था। कुसुम इस वक्त मेरी स्वामिनी बनी हुई थी। मैं उसके इशारे पर नाच रही थी। चदा, उस वक्त मुझे ज्ञात हुआ कि कुसुम पर विनोद को जितना विश्वास है, वह मुझपर नहीं। मैं इस योग्य हूँ ही नहीं। मेरा दिल सैकड़ों प्रश्न पूछने के लिए तड़फड़ा रहा था, लेकिन कुसुम एक पल के लिए भी विनोद के पास से नटलती थी। मै इतनी मूर्ख हूँ कि अव- सर पाने पर इस दशा मे भी मैं विनोद से प्रश्नों का तांता बांध देती। विनोद को जब नींद आ गई, तो मैंने आँखों मे आँसू भरकर कुसुम से पूछा-बहन, इन्हें क्या शिकायत है ! मैंने तार भेजा, उसका जवाब नहीं प्राया। रात दो बजे एक ज़रूरी और जवाबी तार भेजा । दस बजे तक तार- घर में बैठी जवाब की राह देखती रही। वहीं से लौट रही थी, जब तुम रास्ते में मिलीं। यह तुम्हें कहाँ मिल गये ! कुसुम मेरा हाथ पकड़कर दूसरे कमरे में ले गई और बोली-पहले तुम यह बतानो कि भुवन का क्या मुआमला था ? देखो साफ कहना ।