पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/२८

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n तगादा सेठ चेतराम ने स्नान किया, शिवजी को जल चढ़ाया, दो दाने मिर्च चबाये, दो लोटे पानी पिया और सोटा लेकर तगादे पर चले। सेठजी की उम्र कोई पचास की थी। सिर के बाल झड़ गये थे और खोपड़ी ऐसी साफ-सुथरी निकल आई थी, जैसे ऊसर खेत । आपकी आँखे थीं तो छोटी ; लेकिन बिलकुल गोल । चेहरे के नीचे पेट था और पेट के नीचे टांगे, मानो किसी पीपे में दो मेखें गाड़ दी गई हों । लेकिन, यह खाली पीपा न था। इसमें सजीवता और कर्म-शीलता कूट कूटकर भरी हुई थीं। किसी बाकीदार असामी के सामने इस पीपे का उछलना-कूदना और पैतरे बदल ना देखकर किसी नट का चिंगिया भी लजिन हो जाता। कैसी आँखे लाल-पीली करते, कैसे गरजते कि दर्शको की भीड लग जाती थी। उन्हें कजूस तो नहीं कहा जा सकता , क्योकि, जब वह दूकान पर होते, तो हरेक भिखमगे के सामने एक कौड़ी फेक देते । हाँ, उस समय उनके माथे पर कुछ ऐसा बल पड़ जाना, आँखे कुछ ऐसी प्रचड हो जाती, नाक कुछ ऐसी सिकुड़ जाती कि भिखारी फिर उनकी दूकान पर न आता । लहने का बाप तगादा है, इस सिद्धात के वह अनन्य भक्त थे । जलपान करने के बाद सध्या तक वह बराबर तगादा करते रहते थे। इसमें एक तो घर का भोजन बचता था, दूसरे असामियों के माथे दूध, पूरी, मिठाई श्रादि पदार्थ खाने को मिल जाते थे। एक वक्त का भोजन बच जाना कोई साधारण बात नहीं है। एक भोजन का एक पाना भी रख लें, तो केवल इसी मद मे उन्होंने अपने तीस वषो के महाजनी जीवन मे कोई पाठ सौ रुपये बचा लिये थे फिर लौटते समय दुसरी वेला के लिए भी दूध, दही, तेल, तरकारी, उपले, ईधन मिल जाते थे । बहुधा सध्या का भोजन भी न करना पडता था। इसलिए तगादे से न चूकते थे । आसमान फट पड़ता हो, आग बरस रही हो, आंधी आई हो; पर सेठजी प्रकृति के अटल नियम की भांति तगादे पर ज़रूर निकल जाते।